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________________ १७६ जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन ऋषि-मुनि - 'शीलकथा', 'सीता चरित', 'बंकचोर की कथा', 'दर्शन कथा', आदि काव्यों में इन चरित्रों का शीलांकन हुआ है । इनकी उत्तम प्रकृति में आद्योपान्त एकरूपता दिखायी देती है। अपनी इस अपरिवर्तनीय और एक रस प्रकृति से कारण ये शुद्ध-बुद्ध और सिद्ध प्रतीत होते हैं। कवियों ने इन पात्रों के जीवन के पूर्वांश का चित्रण न कर केवल इनकी विरागावस्था का ही प्रायः विवेचन किया है। स्वयं आत्म-स्वातंत्र्य के लिए सर्वात्मना स्वाश्रयी रहना और समाज को उसी का उपदेश देना ही इनके चरित्र की प्रमुख विशेषता है। ये अपने हृदय में सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, त्याग, वैराग्य, समता आदि गुणों को धारण किये रहते हैं। इनके इन्हीं गुणों के कारण समाज इन्हें सदैव श्रद्धा और भक्ति की दृष्टि से देखता है। ये मधुकर-वृत्ति से अनुच्छिष्ट आहार ही ग्रहण करते हैं । यह आहार शरीरपोषण, आयु-वृद्धि या स्वाद की दृष्टि के नहीं लिया जाता, अपितु प्राणरक्षा के निमित्त लिया जाता है । ये सांसारिक ममत्व एवं भोगों से विरत होकर एकाकी विहार करते हुए काम, क्रोध, मद, लोभ, मोहादि पर विजय प्राप्त कर संसारी पुरुषों को स्व-पर-कल्याण का उपदेश देते हैं। ये कष्ट सहिष्णु होते हैं और तपस्या करते समय अनेक कष्टों, बाधाओं और बाईस परीषहों को वीरेश्वर की भाँति सहते रहते हैं तथा अपने शरीर तथा हृदय को वज्र-सम कठोर बनाकर दुधर्ष तपस्या में रत रहते हैं। १.. (क) बारू वार नमोस्त कर्यो। पग नांगो होय पायन पर्यो॥ धन या घड़ी धन यो बार । आज धनि जनम सफलो सार ।। बारंबार भगति उच्चरै। स्वामी आजि असन हम करै॥ : -बंकचोर की कथा, पद्य ४६, ४७, पृष्ठ ६ । (ख) दर्शन कथा, पद्य ४६ से ५२, पृष्ठ ८ । दुद्धर तपस्या करै अपार । सहै परीसह घोर अंधार ॥ वरषा सीत घाम बहु सहै । आतम ध्यान कर्म • दहै ।। -बंकचोर की कथा, पद्य ६१, पृष्ठ ५।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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