SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 170
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चरित्र-योजना १७५ २. मानव चरित्र: वस्तुतः ये ही प्रमुख चरित्र हैं जिन पर मानवता का उत्थान और पतन प्रत्यक्षतः निर्भर करता है। इन चरित्रों के बिना धरती का इतिहास ही अधूरा और निष्प्राण है। हमारे प्रबन्धों में मानव चरित्र प्रायः तीन प्रकार के बतलाये गये हैंउत्तम, मध्यम तथा अधम । उत्तम पात्रों के शीलाचार में उदात्त गुणों का समवाय मिलता है, मध्यम श्रेणी के पात्र शीलाचार की दृष्टि से सामान्य कहे जा सकते हैं और अधम श्रेणी के पात्र दुर्जन, अवगुणों से पूरित तथा निंद्य कहे जा सकते हैं । आगे इनका पृथक्-पृथक् विवेचन देखिये । उत्तम चरित्र ये पात्र प्रायः सत्वगुणी, साधना में निष्णात और प्रत्येक परिस्थिति में अपने सत्य एवं साधना-पथ पर अडिग रहते हैं। इनमें मानवीय गुण पूर्ण विकसित अवस्था में पाये जाते हैं । इनकी उत्तम प्रकृति में कदाचित् ही अन्तर आता है । प्रबन्ध के मध्य इन पात्रों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। सारी कथा के केन्द्र-बिन्दु ये ही होते हैं। इनमें से ही अधिकांश प्रबन्धों के नायक होते हैं । इन्हें मोटे रूप में दो वर्गों के रखा जा सकता है-पुरुष चरित्र और नारी चरित्र । पुरुष चरित्र ये पात्र नारी पात्रों की अपेक्षा संख्या में अधिक हैं। अधिकांश काव्यों के नायक का गौरव भी इन्हीं को प्राप्त है । कवियों की प्रतिभा का अधिक उपयोग इन्हीं चरित्रों के शील-निरूपण में हुआ दिखायी देता है। इनमें ऋषि-मुनि पात्र, तीर्थकर पात्र और अन्य आदर्श पात्र शामिल हैं। तीय कहै चलबो नहीं, इहि बिन काढ़े आज । स्वामि बड़ो उपकार है, कीजे उत्तम काज ॥ -मधुबिन्दुक चौपई, पद्य २४, २६, ३३, पृष्ठ १३७-१३८ ।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy