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________________ १०८ जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन उपयुक्त वर्गीकरण से यह अर्थ ग्रहण नहीं करना चाहिए कि किसी एक वर्ग के काव्यों में दूसरे वर्ग की विशेषताओं के दर्शन ही नहीं होते। कवि--स्वतंत्र प्रतिभाशाली व्यक्तित्व किसी विषय अथवा काव्य-सिद्धान्तों की कठोर सीमाओं में आबद्ध नहीं रहता। अतः एक वर्ग की काव्य कृतियों में दूसरे वर्ग की विशेषताओं का मिलना स्वाभाविक है। आलोच्य प्रबन्धों में बहुत सी सामान्य प्रवृत्तियों के दर्शन होते हैं; किन्तु विषय की दृष्टि से उनमें जो तत्त्व मुख्यतः उभर कर आया है, उसी के आधार पर यह वर्गीकरण किया गया है। ऐतिहासिक या पौराणिक इस वर्ग के अन्तर्गत वे रचनाएँ आती हैं, जिनका प्रणयन इतिहास अथवा जैन पुराणों के आधार पर हुआ है । ये वे काव्यग्रन्थ हैं, जिनका सम्बन्ध इतिहास से है । ऐसे काव्यों में यद्यपि कल्पना का भी समुचित समावेश है, किन्तु है वह ऐतिहासिक परिधि के भीतर ही। कोई भी काव्य ऐतिहासिक होने की अभिधा तभी पाता है जब उसमें काल, पात्र, घटनाओं और तत्कालीन परिस्थितियों का चित्रण इतिहास सम्मत होता है। __ जैन पुराणों को आधार रूप में ग्रहण कर जैन कवियों ने विपुल परिमाण में साहित्य-सृष्टि की है। इन पुराणों में प्रायः 'त्रिषष्ठिशलाका पुरुषों अर्थात् चौबीस तीर्थंकरों, बारह चक्रवतियों, नौ नारायणों, नौ प्रतिनारायणों और नौ बलदेवों का जीवनचरित वर्णित है । अन्य पुराण ग्रन्थों में प्राचीन महापुरुषों के जीवन का वर्णन है । जन ग्रन्थों को, जिनमें पुरातन पुरुषों का चरित्र वर्णित है, 'पुराण'' की संज्ञा दी है । कहीं-कहीं पुराण को इतिहास भी कहा गया है । ब्राह्मण ग्रन्थों, उपनिषदों और बौद्ध साहित्य में भी पुराण शब्द इतिहास के अर्थ में ही प्रयुक्त हुआ है और बहुधा दोनों शब्दों का प्रयोग एक साथ (इति५. आदिपुराण, सर्ग २, श्लोक ९६ से १५४।। २. आदिनाथ चरित।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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