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________________ ४० प्राचीन हिन्दी जैन कवि बादशाह इस बुद्धिमानी से प्रसन्न हुए और हँसकर बोले, कविराज! क्या चाहते हो, कविवर ने तीन बार वचन बद्ध कर कहा जहांपनाह ! आज के पश्चात् फिर कभी दरवार में स्मरण न किया जाऊं यही मेरी याचना है इस विचित्र याचना से बादशाह स्तंभित रह गए। वह दुखित और उदास होकर बोले कविवर! आपने अच्छा नहीं किया। इतना कहकर वह महल में चले गए और कई दिन तक दरबार में नहीं आए। कविवर अपने आत्म ध्यान में लवलीन रहने लगे। दयालुता . कविवर बड़े दयाशील थे किसी के दुःख को देखकर वे शीघ्र ही दुखित हो जाते थे, और उसके दुःख दूर करने का पूर्ण प्रयत्न करते थे। एक समय वे सड़क पर शुष्क भूमि देखकर मूत्र त्यागकर रहे थे। उसी समय एक नए सिपाही ने आकर उन्हें पकड़ लिया और दो चार चपत जड़ दिए, कविवर ने चूं तक नहीं किया। दूसरे दिन किसी कार्य के लिए बादशाह ने उसे बुलाया । दैवयोग से कविवर बनारसीदास उस समय बादशाह के निकट बैठे थे उन्हें देखकर बेचारे सिपाही के प्राण सूख गए, सिपाही कार्य करके चला गया। तब कविवर ने बादशाह से कहाःहुज़र! यह सिपाही बड़ा ईमानदार है। और गरीब है यदि . इसका कुछ वेतन बढ़ा दिया जाय, तो बेचारे की गुजर होने लगेगी, बादशाह ने तुरंत ही उसकी वेतन वृद्धिकर दी। इस
SR No.010269
Book TitleJain Kaviyo ka Itihas ya Prachin Hindi Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchandra Jain
PublisherJain Sahitya Sammelan Damoha
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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