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________________ ३८ प्राचीन हिन्दी जैन कवि wrow...more कविवर की दृढ़ता कविवर वनारसीदासजी अपने विचारों में पूर्ण दृढ़ थे उनमें स्वाभिमान और आत्मगौरव की मात्रा पूर्ण रूप में थी विचारपूर्वक जिस सिद्धान्त को वे गृहण कर लेते थे किसी भय अथवा प्रलोभन द्वारा उससे विचलित होना अत्यन्त कठिन था अपनी प्रतिज्ञा पालन में वे साहसी और हद थे। कहते हैं एक समय बादशाह जहाँगीर के दरवार में एक जवान मुसलमान ने आकर कहा- हुजूर ! वादशाह सलामत ! गजव की वातहै कि आपकी सल्तनत में ही ऐसे विद्रोही मौजूद हैं जो आपको सलाम नहीं करते। वादशाह ने पूछा-ऐसा कौन आदमी है जो जहाँगीर की हुकूमत को नहीं. मानता। उस मनुष्य ने वनारसीदासजी का नाम लिया वनारसीदासजी सम्मान पूर्वक दरवार में बुलाये गये वह निर्भीकता पूर्वक अपने स्थान पर बैठ गये। आज संपूर्ण सभासदों की दृष्टि उन्हीं की ओर लगी हुई थी। बादशाह ने उनसे सलाम करने के लिये कहा तब उन्होंने वड़े साहस के साथ उसी समय निम्न लिखित पद्य बनाकर सुनायाः जगत के मानी जीव है रह्यो गुमानी ऐसो । आश्रव असुर दुख दानी महाभीम है ।। ताको परिताप खंडिवे को परगट भयो। धर्म को धरैया कर्म रोग को हकीम है ।
SR No.010269
Book TitleJain Kaviyo ka Itihas ya Prachin Hindi Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchandra Jain
PublisherJain Sahitya Sammelan Damoha
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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