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________________ १९ कविवर वनारसीदास ... .. anurn rrrrrrrrrrrr आ गई उसने चार पाई के नीचे पड़ रहने का हुक्म दिया। तब टाट पर नीचे वेचारे बनारसीदास और उनके साथी सोए और उसके ऊपर चारपाई पर नवाबजादे सैनिक पैर फैलाकर सोए। __ एक समय आप अपने साथियों के साथ व्यापार के लिए जा रहे थे। अचानक जंगल में भूल गए और डाकुओं के हाथ में पड़ गए । डाकुओं का उस समय बड़ा आतंक था वे व्यापारियों के साथ बड़ी नृशंसता का व्यापार करते थे। कविवर को इस विपत्ति के समय एक युक्ति सूझ गई उन्होंने उस समय बड़े धैर्य पूर्वक बुद्धिमानी से कार्य किया। डाकुओं के चौधरी के निकट जाकर उन्होंने २-३ श्लोक बोलकर उसे आशीर्वाद दिया । डाकुओं ने इन्हें ब्राह्मण समझकर बड़े सम्मान के साथ रक्खा । रात्रि में इन्होंने सूत के जनेऊ बटकर पहन लिए और मिट्टी के त्रिपुंड लगाकर अपना ब्राह्मण वेप बना लिया। सवेरा होते ही डाकुओं ने इनको प्रणाम किया और दान-दक्षिणा देकर बड़े आदर से इन्हें विदा किया, ये आशीर्वाद देते हुए ग्राम को रवाना हुए। एक डाकू इनके साथ ग्राम तक गया। इस प्रकार युक्ति के बल से ये लुटने से बच गए। ऐसी २ अनेक आपत्तियों के बीच में से आपको अनेक चार गुजरना पड़ा था किन्तु आपने आपत्तियों का बड़े साहस से साम्हना किया और अपनी दृढ़ता का पूर्ण परिचय दिया । पत्नी सुख । कविवर का प्रथम विवाह १० वर्ष की अल्प आयु में खैराबाद निवासी सेठ कल्याणमलजी की सौभाग्यवती कन्या के साथ हुआ था। आपकी पत्नी बड़ी सुशीला, संतोषी और
SR No.010269
Book TitleJain Kaviyo ka Itihas ya Prachin Hindi Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchandra Jain
PublisherJain Sahitya Sammelan Damoha
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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