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________________ प्राचीन हिन्दी जैन कवि करना पड़ता था । कविवर को भी व्यापार के समय अनेक यातनाएं सहना पड़ी थीं । १८ vvvvv एक बार आप जौनपुर से गाड़ियों में माल लेकर आगरा जा रहे थे अनायास ही मार्ग में भीषण जल की वर्षा होने लगी । समस्त मार्ग पानी और कीचरण से भर गया, रात्रि का समय हो गया था मीलों तक कहीं ठहरने को स्थान नहीं था। बड़ी कठिनता से आगे चलने पर एक झोपड़ी दिखलाई दी गाड़ियों को एक स्थान पर छोड़कर उसमें स्थान पाने की इच्छा से वे झोपड़ी के निकट गए । झोपड़ी की दयालु महिलाने उन्हें उसमें खड़े हो लेने का आश्वासन दिया किन्तु उसका निष्ठुर पति वाँस लेकर दौड़ा और इन्हें कोठरी के बाहिर निकाल दिया। कविवर कहते हैं । फिरत फिरत फावा भये, बैठन कहै न कोय | तल कीच सौं पग भरे, ऊपर बरसत तोय ॥ अंधकार रजनी विपैं, हिम रितु अगहन मास । नारि एक बैठन को, पुरुष उठ्यो लै बांस || अंत में वर्षा में भीगते फिरते एक चौकीदार की झोपड़ी के निकट पहुँचे उससे अपनी विपत्ति की कहानी कह सुनाई । चौकीदार का हृदय पिवल गया और उसने रात्रिभर रहने के लिए जरा-सा स्थान बतला दिया। चौकी में जगह इतनी थी कि सोना तो दूर रहा चार आदमी बैठ भी नहीं सकते थे । इन्होंने अपने बैठने का प्रबंध किया ही था कि इसी समय अचानक घोड़े पर सवार हुआ एक सैनिक आ पहुँचा । उसने डाँट उपटकर इन सव को झोपड़ी से अलग कर दिया। बेचारे उस घनघोर बरसात में वाहिर निकलने को ही थे कि इतने में उस निष्ठुर सैनिक को दया
SR No.010269
Book TitleJain Kaviyo ka Itihas ya Prachin Hindi Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchandra Jain
PublisherJain Sahitya Sammelan Damoha
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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