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________________ संसार को सुख शान्ति देने वाले पुण्य चरित दो तत्वज्ञ. कवियों का यह पुण्यमय सन्देश है। पाठकों को इसमें खोजने पर भी अश्लील श्रृंगार की गंध नहीं मिलेगी और न कामिनियों के विचित्र चित्रों का चित्रण हो इस में होगा। विलास वासनात्रों को उद्दीप्त करनेवाली कल्पनाएँ और राग रङ्ग में डुवाने वाले अलंकारों का इसमें सर्वथा अभाव होगा। इसमें प्रत्येक स्थान पर संयम, सञ्चरित्रता और आत्मनिर्णय का पवित्र तीर्थ प्राप्त होगा। कविवर बनारसीदास जी का जीवन लिखने में हमे श्रीमान् पं० नाथूराम जी प्रेमी द्वारा संपादित बनारसी विलास से काफी सहायता प्राप्त हुई है। कहीं कहीं तो हमें उनके उद्धरणों को ज्यों का त्यों रखना पड़ा है। इसके लिये हम प्रेमी जी के अत्यन्त कृतज्ञ हैं। हमारी इच्छा कवियों की विस्तृत समालोचनां और उनकी कविताओं की तुलनात्मक दृष्टि से विवेचना करने की थी। किन्तु पुस्तक को शीघ्र प्रकाशित करने तथा समयाभाव के कारण ऐसा करने में हम समर्थ न हो सके। यदि अवसर मिला तो अगले संस्करण में इन दो विपयों की विस्तृत रूप से चर्चा की जायगी। पाठकों से निवेदन है कि वे जैन कवियों के इस नन्दन निकुंज में एकवार अवश्य ही विचरण . करें और उनके पवित्र... काव्य रस का आस्वादन करें। । " .. ... साहित्य-सेवक साहित्य रत्नालय, । मलचन्द्र वत्सल "दमोह वीर निर्वाण २४६४ . साहित्य शास्त्रा
SR No.010269
Book TitleJain Kaviyo ka Itihas ya Prachin Hindi Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchandra Jain
PublisherJain Sahitya Sammelan Damoha
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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