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________________ १० | जैन कथामाला (राम-कथा) था और तुम नगर में प्रवेश कर रहे थे। तुम्हें देखकर इसने अपशकुन समझा और शस्त्र प्रहार करके भूमि पर पटक दिया। तुमने शान्त भावों से मरण किया और महेन्द्र कल्प नाम के चौथे स्वर्ग में देव हुए। वहाँ से च्यवकर तुम लंका में राक्षसपति वने हो । वह लुब्धक साधु-घात के पाप से नरक में गया और वहाँ से निकलकर यहाँ वानर के रूप में .. उत्पन्न हुआ। राक्षसवंश की उत्पत्ति बताते हुए कहा गया है ब्रह्माजी ने पहले जल की सृष्टि की और उसकी रक्षा के लिए अनेक प्राणियों की उत्पत्ति । इनमें हेति और प्रहेति दो राक्षस भी थे। दोनों परस्पर भाई थे। प्रहेति तो तपस्या करने लगा किन्तु हेति ने 'काल' की भयंकर रूप वाली वहन 'भया' से विवाह कर लिया । इससे जो पुत्र उत्पन्न हुआ उसका नाम पड़ा विद्युत्केश । विद्युत्केश का विवाह हुआ 'सन्ध्या' की पुत्री 'सालकटंकटा' से । उसने गर्भधारण किया और मन्दराचल पर्वत पर जाकर एक पुत्र प्रसव किया। अपने नवजात शिशु को वहीं छोड़कर वह विद्युत्केश के पास लौट आई। बालक वहीं पड़ापड़ा रोने लगा। उधर आकाश-मार्ग से शंकर-पार्वती जा रहे थे। वालक पर दया करके उन्होंने उस राक्षसकुमार को युवा बना दिया। साथ ही पार्वती ने वरदान दिया-'राक्षसियां जल्दी ही गर्भ धारण करके प्रसव करेंगी और उनकी सन्तानें शीघ्र ही युवा हो जायेंगी।' शंकर जी ने उसे एक दिव्य विमान भी दिया । इस राक्षस पुत्र का नाम पड़ा सुकेश ! नुकेश शंकरजी के वरदान से समृद्धिशाली हो गया। इसका विवाह ग्रामणी नामक गन्धर्व की पुत्री देववती से हुआ। देववती के तीन पुत्र हुए माल्यवान, माली और सुमाली । तीनों ने घोर तपस्या फारके ब्रह्माजी ने किसी से भी परास्त न होने का वरदान' प्राप्त कर लिया। .
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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