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________________ ४४८ | जैन कथामाला (राम-कथा) दर्शन करने हों तो नम्रतापूर्वक जाओ । सैन्य सजाकर शत्रुतापूर्वक नहीं । शत्रु के लिए उन्हें साक्षात् काल ही समझो। उनके बल की कोई सीमा नहीं । - तो उसकी भी परीक्षा हो जायगी माता ! हम भी देख लेंगे कि श्रीराम के पुत्र लवण और अंकुश पराक्रमी हैं भी या नहीं । वज्रजंघ ने बीच में ही बात काटी - नहीं पुत्र ! तुम्हारा पराक्रम तो यह सम्पूर्ण नरेश जानते हैं । कौन कहता है कि तुम पराक्रमी नहीं हो । - - बल और पराक्रम की परीक्षा सर्वश्रेष्ठ बली के सम्मुख होती है। छोटे-मोटे राजाओं को वश में कर लेना भी कोई पराक्रम हैं । सिंह का मुकाबला जब तक सिंह से ही न हो तब तक क्या पराक्रम ? सीता रोकती ही रह गई किन्तु दोनों कुमार न माने । वे सभी विजित राजाओं को साथ लेकर चल दिये । पीछे-पीछे विशाल सेना थी और आगे दश हजार सुभटों का अग्रगामी दल । I पिता-पुत्र के युद्ध से भविष्य के संकट की आशंका करके सीता रोने लगी । त्रिषष्टि शलाका ७६ - उत्तर पुराण, पर्व ६८, श्लोक ६६० * *
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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