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________________ • ४०६ | जैन कथामाला (राम-कथा) . . राम की आँखों में आँसू आ गये । कठिनाई से वोल सके -भाई ! हमारा त्याग करके हमें दुःखी क्यों करते हो ? पहले के समान ही शासन करो और हमें सुखी करो। . राम के आग्रह का उत्तर न दे सका शीलवान भरत ! मुंह लटकाये उठकर चलने लगा । लक्ष्मण तुरन्त उठे और भरत को हाथ पकड़कर बिठा लिया। भाई का आग्रह न टाल सके । भरत मौन होकर बैठ गये किन्तु उनके हृदय की वैराग्य-भावना में तनिक भी कमी न आई। ____ भरत के इस निश्चय से अन्तःपुर में विशल्या आदि सभी रानियाँ संभ्रमित हो गई। किसी प्रकार उनका हृदय भोगों में रमे इसलिए रानियों ने जल-क्रीडा की योजना बनाई। भरत ने भी उनकी यह इच्छा स्वीकार कर ली। सवने समझा कि भरत अब संसार-भोगों की ओर मुड़ जायेंगे। सरोवर के निर्मल जल में रानियां भरत के साथ जल-क्रीड़ा करने लगीं । एक मुहूर्त तक तो भरत क्रीडा करते रहे और फिर जल से.बाहर निकलकर सरोवर के किनारे आ खड़े हए । उनका वैराग्यपूर्ण हृदय जल-क्रीड़ा से उचट गया था। वे यों ही नगर की ओर ,देखने लगे। . उसी समय भुवनालंकार गजेन्द्र उन्मत्त होकर अपने वन्धन तुड़ाकर भाग निकला था। दैवयोग से वह सरोवर की ही ओर आ निकला । मत्त गजेन्द्र की नजरें भरत से टकराईं और वह निर्मद हो 'गया। भेड़ जैसा बिलकुल शान्त वन गया। उसे पकडने के लिए पीछे से राम-लक्ष्मण अनेक सामन्तों के साथ चले आ रहे थे। उन सवने यह चमत्कार देखा तो चकित रह गये। . ___ राम ने देखा गजेन्द्र भरत की ओर देख रहा है और भरत उमकी ओर । भरत की आँखों में हर्ष की चमक थी मानो किसी पुराने साथी तुड़ाकर भागत गजेन्द्र की नजर शान्त बन गया। आ रहे
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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