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________________ रावण वध | ३८५ - सती ने तुरन्त अभिग्रह लियाः -- यदि उनकी (राम-लक्ष्मण की) मृत्यु हो जाय तो उसी समय से मुझे आमरण अनशन हो । .. सीता की अविचल, पति भक्ति देखकर रावण का पापी हृदय . भी डोल गया। वह सोचने लगा-'अरे ! मैंने व्यर्थ ही इस सती को भी संताप पहुँचाया. और स्वयं भी कामाग्नि में जला। यह .. शरीर छोड़ सकती है किन्तु राम को नहीं। इसके रोम-रोम में .. राम वसा है।' ... ........ .... .. . उसकी विचारधारा पुनः पलटी-'अव क्या हो सकता है ? इसे ... वापिस देना तो अपमान और लज्जा की बात होगी। संसार में यही अपयश होगा कि महाबली. रावण एक नारी के सम्मुख झुक गया, . पराजित हो गया । अपमान का जीवन भी कोई जीवन है, इससे तो: मृत्यु लाख गुनी अच्छी ।' ... ... .. ...लंकेश ने निश्चय किया- 'युद्ध में मैं राम-लक्ष्मण को मारूंगा नहीं, मात्र बन्दी बना लूंगा और यहाँ लाकर सीता उन्हें सौंप दूंगा। . इसमें मेरा सम्मान भी रह जायगा, यश भी. फैलेगा और इस सती का संताप मिट जायेगा । और यदि मैं ही मर गया तो राम से इसका मिलाप स्वयं ही हो जायगा। मेरी मृत्यु हो या विजय सीता का कल्याण दोनों दशाओं में ही निश्चित है। आज का दिन सीता के . कल्याण का ही होगा। .. गम्भीर. ऊहापोह, सोच-विचार में निमग्न रावण : वहाँ से चला आया। इन्हीं विचारों में उसे रात को नींद भी नहीं आई। प्रातःकाल हो गया। ............ ................... - सती के अविचल पातिव्रत्य ने रावण जैसे दुर्मद का भी हृदय परिवर्तित कर दिया । धन्य है सती शिरोमणि सीता । ... ... ..
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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