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________________ : १७: रावण वध विद्या सिद्ध हो जाने के उपरान्त जैसे ही रावण अपने आसन से उठा तो पटरानी मन्दोदरी ने अंगद के दुर्व्यवहार का सम्पूर्ण वृत्तान्त कह सुनाया । अभिमानपूर्वक उसने हुंकार भरी । मन्दोदरी समझ गई कि रावण को विद्या सिद्ध हो चुकी है। स्नान भोजन आदि आवश्यक शारीरिक क्रियाओं से निपटकर लंकेश्वर अभिमान से ऊंचा मुँह किये देवरमण उद्यान पहुँचा और सीताजी से कहने लगा -सुन्दरी ! आज तक तो मैंने तेरी खुशामद की। मेरा नियम भंग न हा इसलिए तुझे छोड़ता रहा किन्तु जानको ! अव स्पष्ट सुन ले । राम-लक्ष्मण को मारकर तुझ पर वलात्कार करूंगा। रावण के वज्र समान कठोर शब्दों ने जानको के मर्म पर तीव्र प्रहार किया । वह अचेत हो गई। रक्षक राक्षसियों के शीतोपचार से सचेत हुई तो सामने यमदूत के समान रावण अव भी खड़ा था शीलवती ने सस्वर कहा -दुप्ट ! उससे पहले ही मेरे प्राण निकल जायेंगे। मुस्कराकर दशमुख वोला -सीते ! न तो मुझे आत्महत्या का कोई साधन मिलेगा और न तू मर सकेगी । मैं तुझ प्रत्येक दशा में जीवित रखूगा ।
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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