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________________ बहुरूपिणी विद्या की सिद्धि | ३७६ दिया कि-एक सीता के वदले मैं आधा राज्य और तीन हजार सुन्दरियाँ दे सकता हूँ। ' चतुर दूत ने लंकेश की यह बात भी गाँठ बाँध ली । उसने प्रणाम किया और लंका से निकलकर राम के शिविर में जा पहुँचा । आदरपूर्वक प्रणाम करके राम से वोला -श्रीराम ! मैं लंकेश्वर का दूत हूँ और उनकी ओर से सन्धि करने आया हूँ। ___- क्या चाहता है तुम्हारा स्वामी ? --राम ने किंचित् मुस्कराहट से कहा। दूत बहुत चतुर था । एक-एक बात कहने लगा.-आप हमारे सभी वन्दियों को मुक्त कर दें। -~और:..... ? -राम ने पूछा। --आधा राज्य और तीन हजार कन्याएँ ग्रहण कीजिए। राम के मुख पर हँसी खेल गई। उन्होंने पूछा-~~-इन सबके बदले क्या चाहता है, लंकापति ? -बस ! एक छोटी सी बात ! -दूत ने उत्तर दिया। -वह क्या ? - -सीताजी से लंकेश के विवाह की आपकी सम्मति । -दूत ने कह ही तो दिया हिम्मत बाँधकर । शिविर में उपस्थित हनुमान, सुग्रीव, भामण्डल, लक्ष्मण आदि सभी के मुख रक्तवर्णी हो गये किन्तु उन्होंने वीच में बोलना उचिन न समझा । राम ने शान्त स्वर में कहा -दूत ! न तो मुझे राज्य की आकांक्षा है और न सुन्दरियों की इच्छा । मुझे तो केवल सीता चाहिए क्योंकि वह मेरी धर्मपत्नी है।
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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