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________________ लक्ष्मण पर शक्ति-प्रहार | ३६७ -चिन्ता मत करो! तुम्हारा देवर प्रातःकाल तक बिल्कुल ठीक _हो जायगा और दोनों भाई शीघ्र ही तुम्हें दर्शन देकर प्रसन्नता प्रदान करेंगे। - विद्याधरी के शब्द सुनकर सीता को सन्तोष हुआ। वह रात भर पंच-परमेष्ठी का जाप करती हुई जागती रही। उसके हृदय में पति और देवर राम-लक्ष्मण की मंगल-कामना व्याप्त थी। -त्रिषष्टि शलाका ७७ *** लक्ष्मण पर चलाई । इस शक्ति के आघात से लक्ष्मण से अचेत हो गये। हनुमान लक्ष्मण को उठाकर राम के पास लाये । राम ने उनका स्पर्श किया और उद्बोधक वचन कहे । राम के स्पर्श मात्र से ही वह शक्ति निकलकर आकाश को चली गई और लक्ष्मण सचेत होकर उठ खड़े हुए। ___ इसके पश्चात् पुनः लक्ष्मण-रावण युद्ध हुआ। लक्ष्मण के तीरों से वह अचेत हो गया ओर सारथि उसे लंका में लौटा ले गया। . . (लंकाकाण्ड, दोहा ८३-८४)
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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