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________________ भरत ( ३२ ) भरत के चरित्र में जैन परम्परा में एक विशेषता है कि वे सर्वत्र धीरगम्भीर और शान्त बने रहते हैं । उनका शील उत्तम कोटि का है । राम-वनगमन के प्रसंग पर भी वे माता कैकेयी से दुर्वचन नहीं कहते । भ्रातृ-प्रेम उनके हृदय में कूट-कूटकर भरा हुआ है । जबकि वैदिक परम्परा में राम-वन-गमन के समय उनका धैर्य विचलित हो जाता है और वे अपनी माता कैकेयी से कटुवचन कहने लगते हैं । कैकेयी कैकेयी का चरित्र वैदिक परम्परा में स्वार्थी नारी के रूप में चित्रित हुआ है | वह अपने पुत्र मोह ( भरत के मोह) में विवेकान्य हो जाती है । वह दो वर माँगती है । एक से - भरत को राज्यसिंहासन और दूसरे से राम को चौदह वर्ष का वनवास । वह इतना भी नहीं सोच पाती कि चौदह वर्ष वाद जब राम वन से वापिस आयेंगे तो क्या स्थिति होगी । भरत को सिंहासन छोड़ना पड़ेगा । किन्तु उसकी बुद्धि पर तो स्वार्थ का परदा पड़ गया थाइतना सोच ही कैसे सकती थी ! लेकिन जैन परम्परा में कैकेयी का चरित्र इतना गिरा हुआ नहीं है । वह केवल एक ही वरदान माँगती है- भरत को 'राज्य तिलक' । इसका भी एक कारण था कि भरत ने अपने पिता राजा दशरथ के साथ ही प्रव्रजित होने का निर्णय कर लिया था । कैकेई अपने पति और पुत्र दोनों का वियोग एक साथ सहने में स्वयं को असमर्थ पा रही थी । इस प्रकार जैन परम्परा को कैकेयी राम-विरोधी नहीं थी, वह उन्हें वन नहीं भेजना चाहती थी, उसका भरत के लिए सिंहासन माँगना तो पुत्र को प्रव्रजित होने से रोकने का बहाना था। जबकि वैदिक परम्परा की कैकेयी रामविरोधी है । सीता सीता के चरित्र के सम्बन्ध में वैदिक परम्परा में वैविध्यपूर्ण वर्णन है । वैदिक परम्परा उन्हें अयोनिजा मानती है । इसी कारण वे राजा जनक को हल
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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