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________________ २६८ | जैन कथामाला (राम-कथा) -वानरराज ! तुम पुनः राजा बन गये। सम्पूर्ण प्रजा को हर्ष . हुआ । यही बहुत है। लुप्त विशेष ज्ञान पुनः प्राप्त हो जायगा और मैं आपको ऐसे मित्र का पता दूंगा जो सीताजी को प्राप्त करने में आपका सहायक होगा। राम-लक्ष्मण ने उसकी मृत-देह का अग्नि-संस्कार किया। उसी समय दिव्य तेज धारण किये हुए कवन्ध प्रगट हुआ और उसने सुग्रीव . का पता बताया। (अरण्यकाण्ड) (२) यहीं शवरी भीलनी की प्रसिद्ध कथा है। शवरी पम्पासरोवर के पश्चिम तट पर आश्रम बनाकर रहती थी। उसने दोनों भाइयों का सत्कार किया और दिव्य लोक की प्राप्ति की। (अरण्यकाण्ड) (३) पम्पासरोवर के समीप ही ऋष्यमूक पर्वत पर सुग्रीव रहता था। दोनों रघुवंशी भाइयों को भटकते देखकर हनुमानजी (हनुमान यहाँ सुग्रीव के मन्त्री बताये गये हैं) को भेजा। हनुमान के प्रयास से ही रामसुग्रीव की मित्रता हुई। (किष्किधाकाण्ड) (४) वाली और सुग्रीव की शत्रुता की घटना का उल्लेख इस प्रकार किया गया है। सुग्रीव राम को अपनी कथा सुनाता हुआ कहता है पिता की मृत्यु के बाद बड़े भाई बाली को राज्यपद और मुझे (सुग्रीव को) युवराज पद मिला। उस समय मायावी नाम का एक वलवान दानव था । एक रात उसने आकर ललकारा । मैं और बड़े भाई वाली बाहर निकले। बड़े भाई को देखकर वह दानव भागा और एक गुफा में घुस गया। हम दोनों भी उनका पीछा करते हुए वहाँ जा पहुंचे। तब बड़े भाई मुझे वाहर बिठाकर उस दानव को मारने के लिए गुफा में घुस गये । एक वर्ष से अधिक समय बीत गया। मैं पहरेदार वना गुफा के द्वार पर बैठा रहा । तव एकाएक गुफा में से रक्त की धार निकली।
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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