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________________ ' (१) जैन रामायण पउम चरिय' (विमलसूरि कृत) में उनका विद्यागुरु कांपिल्य नगर के भार्गव का पुत्र था जबकि वैदिक परम्परा ऋषि वसिष्ठ कों उनका गुरु स्वीकार करती है । (२) राम वनगमन का कारण वैदिक परम्परानुसार १४ वर्ष का वनवास माँगना है, जबकि जैन परम्परा में राम स्वयं ही बन जाने का निर्णय करते है । उनका विचार है कि 'मेरी उपस्थिति में भरत राज्य नहीं लेगा । इसलिए मुझे वन चला जाना चाहिए। मेरी अनुपस्थिति में भरत स्वयं ही राज्य संभाल लेगा। . (३) सीता के अग्नि दिव्य में भी जैन और वैदिक राम-कथा में बहुत अन्तर है-स्थान का भी और राम की भावना का भी । वैदिक परम्परा में सीता लंका विजय के पश्चात जब राम के पास लाई जाती है तो राम उसको कठोर वचन कहकर अस्वीकार कर देते हैं तब सीता अग्नि दिव्य द्वारा अपने अखण्डित शील को प्रमाणित करती है। किन्तु जैन परम्परा में यह दिव्य अयोध्या में हुआ और वह भी लोकापवाद को नष्ट करने के लिए । श्रीराम ने सीता के प्रति न कभी अविश्वास किया और न कभी दुर्वचन कहे । उन्हें सीताजी और उनके निर्मल शील पर दृढ़ विश्वास था। '- इसी कारण तो डा० चन्द्र ने लिखा है-विमलसूरि के पउम चरियं में राम का चरित्र कुछ बातों में वाल्मीकि रामायण से ऊँचा उठता है । इस घटना (लंका विजय के बाद सीता के राम के समक्ष आने की घटना) की कटु आलोचना करते हुए श्री अरविन्दकुमार ने लिखा है-"राम की सच्ची कसौटी तो तब हुई जव युद्ध में विजय प्राप्त करने पर अपहरण के बाद पहली बार सीता उनके सामने आई । राम के मुख पर क्रोध, सुख एवं दुःख के भाव १ पउम चरियं (विमलसूरि विरचित) वि० २५५१७-२६ २ वाल्मीकि रामायण ७६६३६-५५ ३ डा० चन्द्र : लिटरेरी इनवेल्युएशन आफ पउम चरियं, पृष्ठ ८
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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