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________________ ( .२८ ) में वे अपनी तपश्चर्या के बल पर-स्वयं के शुद्ध भावों के कारण। क्योंकि जैनधर्म कृपा पर नहीं, पुरुपार्थ पर विश्वास करता है। प्रत्येक प्राणी अपने पुरुषार्थ-किये हुए कर्मों के अनुसार ही नीचे गिरता है अथवा ऊपर चढ़ता है । सच्चा जैनधर्मानुयायी किसी की कृपा का आकांक्षी नहीं होता। इसीप्रकार सीताजी वैदिक परम्परा के अनुसार सदेह भूमि में प्रवेश कर जाती हैं और जैन परम्परा में तपस्या के पश्चात् आयुष्य पूर्ण होने पर देह त्याग कर स्वर्ग चली जाती हैं,। हनुमान भी अमर होते हैं । वैदिक परम्परा में राम के आशीर्वाद-वरदान से सदेह और जैन परम्परा में तपश्चरण करके मुक्त-अमर (जो पुनः न कभी जन्म लेगा और न मरेगा) । इसलिए हनुमान भी यहाँ परम वन्दनीयपूजनीय हैं। राम-कथा के प्रमुख पात्र इन उपरोक्त भेदों के अनुसार ही दोनों परम्पराओं के प्रमुख चरित्रों के चित्रण में भी भेद हो गया है । कुछ घटनाओं में भी भेद हैं और उनके वर्णन और आशय में भी अन्तर आ गया है । __राम-कथा के प्रमुख पात्र हैं-राम, सीता, लक्ष्मण, भरत, कैकेयी, भामण्डल, वालि, सुग्रीव, हनुमान, तारा, रावण, विभीषण, कुम्भकर्ण, चन्द्रनखा (शूर्पनखा) आदि । इनके अतिरिक्त शम्बूक भी एक ऐसा पात्र है जिसका रामकथा में बड़ा विचित्र स्थान है । इन प्रमुख पात्रों की तुलना दोनों ही परम्परा की दृष्टियों को समझने में उपयोगी होगी। श्रीराम वैदिक परम्परा में राम को विष्णु का अवतार माना है किन्तु जैन परम्परा में उन्हें महापुरुप ही स्वीकार किया गया है । हाँ, आयु के अन्त में वे अवश्य ही मुक्ति प्राप्त करके भगवान बनते हैं। उनके जीवन की मुख्य घटनाओं में प्रमुख भिन्नताएँ निम्न हैं
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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