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________________ २४२ / जैन कथामाला (राम-कथा) वंशस्थल नगर वंशशैल्य पर्वत की तलहटी में बसा हुआ था। नगर-निवासी इन रहस्यपूर्ण भयंकर आवाजों से महाकष्टप्रद स्थिति में पड़े थे। उनके कष्ट ने कृपालु राम को द्रवित कर दिया। वे पर्वत पर चढ़ गये । पीछे-पीछे पदानुगामिनी सीता और लक्ष्मण भी थे। वह पुरुष उन परोपकारियों को देखता ही रह गया। 'धन्य थे वे पराक्रमी वीर जो स्वेच्छा से ही अपने प्राणों को संकट में डालने चल दिये कि लोगों . का कष्ट दूर हो जाय।' पुरुष तो नगर की ओर चला गया और वे तीनों पर्वत शिखर पर जा पहुंचे। - परिश्रम सफल हो गया उनका । सामने ही दो श्रमण कायोत्सर्ग मुद्रा में लीन खड़े थे। भक्तिपूर्वक तीनों ने वन्दना की। गोकर्ण यक्ष द्वारा प्रदत्त वीणा के तार राम ने छेड़ दिये। लक्ष्मण ने मधुर स्वर में गान किया और सीता ने मनोहर नृत्य ! भक्ति रस में आप्लावित तन थिरकने लगता है और मन-मयूर गायन में लीन । यही तो नृत्यवादित्र और गायन की पूर्णता है। तीनों मग्न थे भक्ति में, समय का भान ही न रहा। अनलप्रभ देव के भयंकर अट्टहास ने उनकी मग्नता भंग कर दी। • आँख खोली तो देखा-रात्रि के अन्धकार में भयंकर आकृति वाला एक देव दोनों मुनियों पर उपसर्ग करने हेतु आकाश-मार्ग से दौड़ा चला आ रहा है। गुरुदेव पर उपसर्ग करने वाले को सह न सके राम-लक्ष्मण । सीता को वहीं छोड़ा और उसे मारने दौड़े। अनलप्रभ दोनों भाइयों का तेज न सह सका और वहां से भाग गया। दोनों मुनियों को उसी समय केवलज्ञान हुआ। तत्काल देवों ने
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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