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________________ २३४ | जैन कथामाला (राम-कथा) राजा भरत ने उसे अपने हृदय से लगा लिया। उसका अपराध क्षमा कर दिया क्योंकि सत्पुरुष भक्तवत्सल होते ही हैं। विजयरथ ने भी अपनी छोटी वहिन विजयसुन्दरी का विवाह भरत के साथ करके अपनी स्वामिभक्ति प्रदर्शित की। ___ उसी समय मुनि अतिवीर्य भी विहार करते हुए अयोध्या आये। सभी उनके वन्दन को गये। भरत ने भी भक्तिपूर्वक वन्दना की। कितना अन्तर हो गया था राजा अतिवीर्य और मुनि अतिवीर्य में । यह था श्रामणी दीक्षा का प्रत्यक्ष प्रभाव । जो भरत सिर झुकाने के वजाय युद्ध को तत्पर था वही आज मुनि-चरणों में सिर रखकर स्वयं को धन्य मान रहा था। __ नमन-वन्दन के पश्चात विजयरथ नंद्यावर्तपुर को लौट आया राम-लक्ष्मण-जानकी नंद्यावर्तपुर से विजयपुर आ पहुंचे। . -त्रिषष्टि शलाका ७५
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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