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________________ किन्तु यह कथा लोकप्रिय न हो सकी। जनमानस ने सीता को रावण की पुत्री नहीं माना तथा जिन घटनाओं का इसमें उल्लेख नहीं है उन्हें जनसाधारण कभी विस्मृत नहीं कर पाया । अतः जैन परम्परा में दो प्रकार की राम कथा होते हुए भी विमलसूरि के पउम चरियं तथा रविषेण के पद्म पुराण की कथा ही मान्य रही है। जैन और वैदिक परम्परा की रामायणों में कयान्तर । राम-कथा के सम्बन्ध में जैन और वैदिक परम्परा की रामायणों में भी कुछ अन्तर है । प्रमुख अन्तर राम, सीता और हनुमान तथा रावण विभीषण और कुम्भकर्ण के सम्बन्ध मे हैं । यही राम-कथा के प्रमुख पात्र है । (१) वैदिक परम्परा में राम की एक पत्नी सीता मानी गई है जबकि जैन परम्परा में चार। (२) सीताजी का जैन रामायण में एक सहोदर (युगल रूप से उत्पन्न हुआ) भाई भामण्डल माना गया है जबकि वैदिक परम्परा में सीता माता के उदर से उत्पन्न ही नहीं हुई वन्न् भूमि में से निकली अर्थात् ये भूमिजा-अयोनिजा हैं। (३) वैदिक परम्परा के हनुमान बाल ब्रह्मचारी हैं जवकि जैन परम्परा के विवाहित । साथ ही प्रथम परम्परा इन्हें पूंछधारी वानर मानती है और द्वितीय विद्याधर मानव-अनेक चमत्कारी विद्या सम्पन्न ।' (४) वैदिक परम्परा सीताजी की अग्नि-परीक्षा रावण वध के तत्काल बाद लंका के बाहर युद्ध-क्षेत्र में ही मानती है जब कि जैन परम्परा सीता परित्याग और लवण-अंकुश (लव-कुश) जन्म के पश्चात् अयोध्या में। (५) वैदिक परम्परा का रावण प्रारम्भ से अन्त तक पापी ही है । वह स्थान-स्थान पर बलात्कार करता है, ऋषि मुनियों को उत्पीड़ित करता है, यज्ञों को नष्ट-भ्रष्ट करता रहता है, ब्राह्मणों का काल है और देवताओं का प्राणघातक शत्रु । सिर्फ उसमें एक गुण है कि वह वेदों का प्रकाण्ड विद्वान है। १ इसके लिए और भी देखिए कादम्बिनी का मानस चतुःशती अंक, १९७२
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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