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________________ २३० | जैन कथामाला (राम-कथा) लक्ष्मण ने प्रत्यंचा उतारकर धनुष एक ओर रख दिया। विजयपुर नरेश महीधर ने श्रीराम को नमस्कार किया और सवका सत्कार करते हुए वोले__ --आप लोग मेरे साथ चलिए। यह पुत्री मैंने पहले ही लक्ष्मण को देने का विचार किया था। वह मनोरथ अब पूरा हो गया। आग्रहपूर्वक राजा महीधर राम, लक्ष्मण और जानकी को अपने साथ राजमहल में लिवा ले गये। एक दिन राजा महीधर की राजसभा में नंद्यावर्तपुर के राजा अतिवीर्य का दूत आया और अभिवादन करके कहने लगा- . -मेरे स्वामी, नंद्यावर्तपुर के अधिपति अतिवीर्य का अयोध्या के राजा भरत के साथ विग्रह हो गया है । श्री राम-लक्ष्मण दोनों भाई वहाँ बैठे थे। राम ने पूछा-दूत ! विग्रह का कारण क्या है ? ~ मेरे स्वामी की इच्छा है कि भरत उनको नमन करे, अधीनता स्वीकार कर ले, किन्तु भरत राजा ने स्पष्ट इन्कार कर दिया है। -अच्छा ! तो फिर, अव क्या चाहता है तुम्हारा स्वामी ? -~~राम ने मुस्कराकर पूछा। --विजयपुर नरेश सैन्य सहित उसकी सहायता करें। -दूत ने अपने स्वामी की इच्छा वत्ता दी। __ -क्यों ? क्या वह अकेला ही अयोध्यापति को विजय नहीं कर सकता? इतना निर्वल है ? -राम के स्वर में व्यंग्य स्पष्ट इनकआया ! दूत उस व्यंग्य को समझ तो गया किन्तु उसने मुख पर क्रोध के
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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