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________________ २१२ / जैन कयामाला (राम-कथा) सिंहोदर का उत्तर था -नींद कहाँ से आये, प्रिये ! यह वज्रकर्ण वड़ा कपटी है। अंगुली में स्थित मणिमय मुनिसुव्रत नाथ के विम्ब को तो नमस्कार करता है और मुझे धोखा देता है। वह वज्रकर्ण निरा वज्रमूर्ख ही है। स्वामी के साथ दगावाजी का फल उसे चखाना है। प्रातः ही सैन्य सहित दशांगपुर जाकर उसे मार डालूंगा। उस घोखवाज को तभी ज्ञात होगा. कि सिंहोदर के अपमान का क्या परिणाम होता है। उस पुरुप ने यह आपबीती सुनाकर वज्रकर्ण से कहा -इतना सुनते ही मैं वहाँ से चल दिया और शीघ्र गति से बाकर आपको चेतावनी दे दी। आगे आपकी इच्छा है जो उचित समझें वही कीजिए। ___ राजा वज्रकर्ण ने उस पुरुष की चेतावनी पर अमल किया । नगर को अन्न आदि से पूर्णकर द्वार वन्द करा दिये। __कुछ ही समय वाद सिंहोदर सेना सहित नगर द्वार तक आ पहुंचा । एक दूत के द्वारा उसने कहलवाया___-या तो वज्रकर्ण मुद्रिका उतारकर मुझे प्रणाम करे अन्यथा परिवार सहित यमपुरी जाने को तैयार रहे। वज्रकर्ण ने भी दृढ़ स्वर में उत्तर दे दिया ---मैं पंच परमेष्ठी के अतिरिक्त किसी दूसरे को सिर नहीं झुकाऊँगा। यह मेरा अभिग्रह है, अभिमान नहीं। स्वामी को चाहिए कि मेरी धर्म-भावना को समझें और व्यर्थ की हिंसा का विचार त्याग दें। अन्यथा जैसी उनकी इच्छा। दद्धि पुरुष ने श्रीराम को सम्बोधित करके कहा
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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