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________________ दशरथ को वैराग्य [ १६५ -प्रभो ! मैं पूर्वभव में कौन था ? मुनिश्री ने दशरथ के पूर्वजन्म वताये सोनापुर में भावन नाम के भद्र परिणामी वणिक की दीपिका नाम की पत्नी थी। दम्पति के उपास्ति नाम की एक कन्या थी । उस जन्म में साधुओं के प्रति घृणा के कारण उपास्ति ने अनेक जन्मों तक तिर्यच आदि योनियों में परिभ्रमण किया। अनेक कष्टप्रद योनियों में दुःख पाने के बाद उपास्ति का जीव वंशपुर में धन्य वणिक की पत्नी सुन्दरी के गर्भ से वरुण नाम का पुत्र हुआ। इस जन्म में वह उदारवृत्ति वाला था। साधुओं को दान देने में उसे हर्प होता। इस उदारवृत्ति के कारण अपना आयुष्य पूर्ण करके वह उत्तरकुरु भोगभूमि में युगलिया हुआ। वहाँ से मरण किया तो देव बना । देव पर्याय से च्यवन करके पुष्कलावती विजय में पुष्कलानगरी के राजा नन्दिघोप और उसको रानी पृथ्वीदेवी का पुत्र नन्दिवर्धन हुआ। राजा नन्दिघोष अपने पुत्र नन्दिवर्धन को राज्यभार सौंपकर यशोधर मुनि के चरणों में प्रवजित हो गया और कालधर्म प्राप्त कर अवेयक में 'देव हआ। नन्दिवर्धन ने भी श्रावकधर्म स्वीकार कर लिया और मर वह्मदेवलोक में. देव हुआ। वहाँ से च्यवकर वैताढय गिरि की उत्तर श्रेणी के शिशुपुर नगर के राजा रत्नमाली की रानी विद्युल्लता के गर्भ से सूर्यजय नाम का महापराक्रमी राजकुमार हुआ। एक बार राजा रत्नमाली सिंहपुर के राजा वज्रनयन को जीतने की इच्छा से वहाँ गया। वहाँ रत्नमाली ने उपवन सहित समस्त नगर को ही जला डालने का विचार किया। इस भयंकर अग्निदाह से वाल, वृद्ध, पुरुष, स्त्री, पशु आदि सभी प्राणी जीवित ही भस्म हो जाते और रत्नमाली को तीव्र पाप का वन्ध होता। उस समय सहस्रार देवलोक से एक देव अनुकम्पावश आया और उसे सम्बोधने लगा- . -हे राजन् ! ऐसा घोर पापकर्म मत करो।
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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