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________________ १९४ | जैन कथामाला (राम-कथा) चन्द्रगति और कुमार भामण्डल के हृदय संतप्त तो थे ही उन्होंने सीता के प्रति भामण्डल के स्नेह का कारण पूछा । उत्तर में गुरुदेव ने भामण्डल और सीता के पूर्वभवों का वर्णन तो किया ही साथ ही यह भी बता दिया कि इस जन्म में भी ये दोनों युगल रूप से मिथिलानरेश की रानी विदेहा के गर्भ से उत्पन्न हुए थे। ये दोनों भाई-बहन हैं । भामण्डल का हरण भी पूर्वभव के शत्रु देव ने किया और इसे रथनूपुर के नन्दनोद्यान में छोड़ आया था। यह पूरा वृत्तान्त सुनते ही चन्द्रगति की आँखों के सामने वह दृश्य नाच गया जवकि वह नन्दन उद्यान से एक नवजात शिशु को उठाकर लाया था। सीता को भामण्डल के रूप में भाई मिला और भाई को वहन ! भामण्डल के हृदय का संताप हर्ष में वदल गया। उसने मस्तक झुकाकर राम को प्रणाम किया और सीता से अपने मोह की क्षमा माँगी। राजा जनक को भी बुलवाया गया। वे भी सपरिवार आय । विदेहा अपने विछड़े पुत्र से मिलकर बहुत प्रसन्न हुई। जनक ने पुत्र को कण्ठ से लगा लिया । सर्वत्र आनन्द की लहर व्याप्त हो गई। चन्द्रगति विद्याधर को उसी समय वैराग्य हो आया । वह विचारने लगा-अनजाने में कैसा अधर्म हो जाता? भाई के साथ वहन का विवाह-कितना लोकनिंद्य कर्म है ! ___ उसने वहीं कुमार भामण्डल को राज्य का भार दिया और स्वयं प्रवजित हो गया। - सीता एवं भामण्डल के पूर्वभवों को सुनकर राजा दशरथ के हृदय में भी जिज्ञासा उत्पन्न हुई । अंजलि जोड़कर उन्होंने पूछा
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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