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________________ : ७: सीता-स्वयंवर जनक पुत्री सीता युवती हो गई। उसके लिए योग्य वर के हेतु पिता ने अनेक राजकुमारों की ओर दृष्टि दौड़ाई किन्तु उन्हें कोई उपयुक्त वर जंचा नहीं । राजा जनक पुत्री के विवाह की चिन्ता में पड़े ही थे कि एक और विपत्ति आ गई । अर्धबर्बर देश के आतरंगतम आदि म्लेच्छ राजा उनकी भूमि पर उपद्रव करने लगे। राजा जनक ने अनेक उपाय किये, सामन्त भेजे; किन्तु कोई भी उन म्लेच्छों से पार न पा सका । अन्त में उन्हें अपने परम मित्र राजा दशरथ की याद आई । विपत्ति में मित्र ही काम आते हैं । जनक ने अपने विश्वासी और बुद्धिमान दूत को अपना आशय समझाकर राजा दशरथ के पास भेजा। अयोध्या की राज्यसभा में आकर दूत ने अपना परिचय दिया -अयोध्यापति को मिथिलापति राजा जनक का विशेष दूत प्रणाम करता है। मित्र के दूत को राजा दशरथ ने आदर से आसन पर बिठाया और पूछा -दूत राजा जनक तो कुशल हैं, न ! -जी हाँ, महाराज !
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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