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________________ १२८ | जैन कथामाला (राम-कथा) प्रतिसूर्य के विमान में बैठकर सभी हनुपुर आ गये । अंजना के पिता राजा महेन्द्र और माता हृदयसुन्दरी भी आ गये । आदित्यपुर से पवनंजय की माता केतुमती भी आ पहुँची। सभी सम्बन्धियों के मिलन से हर्ष अनेक गुना बढ़ गया । सबने मिलकर वालक का जन्मोत्सव पुनः मनाया और वह भी पहले उत्सव की अपेक्षा बहुत अधिक उत्साह के साथ। उत्सवोपरान्त सभी जन अपने-अपने नगरों को चले गये किन्तु पवनंजय अपनी पत्नी अंजना और पुत्र हनुमान के साथ हनुपुर में ही ठहर गये। . हनुमान धीरे-धीरे युवक हो गये। युवावस्था के साथ ही उन्होंने अनेक कलाओं और विद्याओं में निपुणता भी प्राप्त कर ली। . xx वरुण के किसी अपराध के कारण रावण उसे विजय करने की योजना बनाने लगा। उसने अपने सभी अधीनस्थ राजाओं के पास सहायतार्थ दूत भेजे । एक दूत हनुपुर भी आया और लंकापति की इच्छा बताई । सुनकर राजा प्रतिसूर्य और पवनंजय जाने की तैयारी करने लगे। हनुमान ने विनयपूर्वक निवेदन किया -युवा पुत्र के होते हुए गुरुजन कष्ट उठायें, यह उचित नहीं है । आप लोग मुझे आज्ञा दीजिए। हनुमान के अति आग्रह पर उसे आज्ञा प्राप्त हो गई। वह हनुपुर से चला और लंका की राज्य सभा में जा पहुंचा। हनुमान की बलिष्ठ देहयष्टि, तेजस्वी मुखमण्डल, भव्य ललाट देखकर लंकापति रावण वहुत प्रभावित हुआ और उसने उन्हें अपनी वगल में सिंहासन पर ही विठा लिया। लंकेश अपने अन्य अधीनस्थ राजाओं सुग्रीव आदि के आ पहुँचने के वाद वरुण से साथ युद्ध करने के लिए निकला।
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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