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________________ ६० | जैन कथामाला (राम-कथा) वही मैं आपको सुनाये देता हूँ। -मधु ने रावण को उत्तर दिया और कहने लगा धातकीखण्ड द्वीप के ऐरावत क्षेत्र में शतद्वार नगर में राजपुत्र सुमित्र और कुलीन पुत्र प्रभव में गहरी मित्रता थी । वे साथ-साथ पढ़े और बड़े हुए थे। सुमित्र जव युवा होकर राजा हो गया तो उसने प्रभव को भी समृद्धिवान बना दिया। दोनों की बाल्यावस्था की मैत्री युवावस्था में और भी दृढ़ हो गई। __एक वार सुमित्र को उसका घोड़ा वेकाबू होकर किसी भयानक जंगल में ले गया। वहाँ एक पल्लीपति ने अपनी सुन्दर कन्या वनमाला का उसके साथ विवाह कर दिया। उसको साथ लेकर राजा सुमित्र वापिस आया तो उससे मिलने प्रभव भी पहुंचा । वनमाला को देखकर प्रभव काम-पीड़ित हो गया । प्रभव की रातों की नींद उड़ गई और रात-दिन वनमाला की चिन्ता करने के कारण वह दुर्वल हो गया । सुमित्र को अपने मित्र का पीला दुर्वल शरीर देखकर वहुत दुःख होता। एक दिन उसने पूछा -मित्र प्रभव ! तुम्हें क्या दुःख है ? ---कुछ नहीं। -तो किस चिन्ता में घुले जा रहे हो ? -मेरे दिल का दुःख कहने योग्य नहीं है । -प्रभव के मुख से अनायास ही निकल गया। सुमित्र मित्र की वात सुनकर बहुत चिन्तित हुआ। वह उससे 'वार-बार आग्रह करके पूछने लगा तो प्रभव ने कहा -मित्र ! मेरे दिल का दुःख तुम जानने को आतुर हो किन्तु यदि मैंने कह दिया तो कुल-कलंकित हो जायगा । मेरी पापाभिलापा मुझे
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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