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________________ हिंसक यज्ञों के प्रचार की कहानी | ८५ था आज वह जनता का जीवन प्राण हो गया। उसकी कीर्ति फैलने लगी। रोगों के उपशमन के साथ-साथ पर्वत अपने मत का प्रचार करता और सहायक वनता शांडिल्य । मत-प्रचारार्थ दोनों ने देशभ्रमण की योजना बनाई। देश भ्रमण करते-करते दोनों धूर्त सगर राजा के नगर में आये । वहाँ शांडिल्य ने अपना भरपूर चमत्कार दिखाया। नगर, राजा का अन्तःपुर, परिवार, आदि सभी रोगग्रस्त हो गये । कोई परिवार ऐसा न बचा जिसमें रोग-रूपी पिशाच ने घर न कर लिया हो । ' जीवनदाता, रोग-त्राता पर्वत साथ था ही। वह सवका उपचार करने लगा। . नगर भर में पर्वत की प्रसिद्धि फैल गई। राजा सगर सहित सभी नगरवासी पर्वत का ही नाम जपने लगे। ___ शाण्डिल्य की प्रेरणा से पर्वत ने अपने मत का प्रचार प्रारम्भ कर दिया । वह लोगों को उपदेश देता "सौत्रामणि यज्ञ में विधिपूर्वक सुरापान करना चाहिए, गोसव यज्ञ में अगम्या स्त्री के साथ भोग करना चाहिए, मातृमेध यज्ञ में १ सुलसा के स्वयंवर में अपमानित होने पर मधुपिंगल तप करने लगा और महाकाल नाम का व्यंतर हुआ । सगर से अपने अपमान का बदला लेने के लिए वह ब्राह्मण का वेश बनाकर उसके पास पहुंचा और कहने लगा-हे राजन् ! यदि तुझे अपनी लक्ष्मी बढ़ानी है, तो वेद में कहे हुए हिंसक यज्ञ कर ।' सगर ने वैसा ही किया और अन्त में वह पापियों की पृथ्वी नरक में जा उत्पन्न हुआ। -उत्तर पुराण ६७।१५९-६३ २ अगम्या स्त्री वह कहलाती है जिसके साथ भोग करना लोकनिंद्य हो जैसे माता, पुत्री, वहन आदि ।
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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