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________________ उद्योतन सूरि ने अनार्य में निम्न जातियों का उल्लेख किया है । शक, यवन, शबर, बर्बर, काय, मुरुण्ड, ओड, गोंड, कर्पटिका, अरवाक, हूण, रोमस, पारस, खस, खासिया, डोंबलिक, लकुस, बोक्कस, भिल्ल, पुलिंद, अंध, कोत्थ, किरात, हयमुख, गजमुख, खरमुख, तुरगमुख, मेंढकमुख, हयकर्ण, गजकर्ण, और, बहुत अनार्य होते हैं- अण्णे वि आणारिया वहवे। जो पापी प्रचंड तथा धर्म का एक अक्षर भी नहीं सुनते । इनके अतिरिक्त कुछ ऐसे भी अनार्य हैं जो धर्म-अर्थ, काम से रहित हैं। चांडाल, भिल्ल, डोंब, शौकरिक और मत्स्यबंधक100 । इस प्रमुख प्रसंग के अतिरिक्त भी उद्योतन ने अन्य प्रसंगों में विभिन्न जातियों का उल्लेख किया है, जिनमें से अधिकांश की पुनरावृत्ति हुई101, कुछ नयी हैं—आरोट्ट, आभीर, कुम्हार, गुर्जर, चारण, जार-जातक, दास, पक्क णकुल, मातंग, मागध, लुहार, सिंहल आदि । उद्योतन सूरि द्वारा कुवलयमाला में वर्णित उपर्युक्त जातियों को उनकी स्थिति एवं कार्यों के आधार पर निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया जा सकता है:-(1) म्लेच्छ जातियां, (2) अन्त्यज जातियां, (3) कर्मकार एवं (4) विदेशी जातियां । म्लेच्छ जातियां:-चातुर्वर्ण्य वर्ण-व्यवस्था के बाहर जिनकी स्थिति थी उन्हें म्लेच्छ जाति का कहा जाता था। मुख्य रुप से आर्य संस्कृति के विपरीत आचरण करने वालों को म्लेच्छ कहा जाता था। इनका अपना अलग संगठन होता था और पृथक रहन-सहन। कुवलयमाला में उल्लिखित निम्न जातियां म्लेच्छ कही जा सकती है:- ओड़, किरात, कुडक्ख, कोंच, कोत्थ, गोंड़, चंचुक, पुलिंद, भिल्ल, शबर एवं रुरुचि । “प्रश्नव्याकरण” में जो म्लेच्छों की सूची दी गयी है उसमें कुवलयमाला में वर्णित म्लेच्छों के अधिकांश नाम समान हैं। चन्द्र मोहन सेन के धौलपुर अभिलेख में (824 ई.) चंबल नदी के दोनों किनारों पर बसे हुये म्लेच्छों का उल्लेख है। इससे ज्ञात होता है कि आठवीं शताब्दी तक म्लेच्छ जाति अलग से संगठित हो चुकी थी। आधुनिक आदिवासियों से इनकी तुलना की जा सकती है। ( 35 )
SR No.010266
Book TitleJain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Tiwari
PublisherIlahabad University
Publication Year1993
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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