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________________ बाण की कादंबरी, त्रिविक्रम की दमयंती कथा और हरि भद्रसूरि की समराइच्च कहा आदि का प्रभाव दर्शित होता है । कथाकोष प्रकरणः – कथाकोष प्रकरण सुप्रसिद्ध श्वेताम्बर आचार्य जिनेश्वर सूरि की रचना है जिसका सृजन उन्होंने सन् 1052 ई० में किया था। कथा कोषप्रकरण के अतिरिक्त अन्य कथा कोष भी प्राकृत में लिखे गये है । उत्तराध्यन की टीका (1073) में हुई। इसके कर्ता नेमिचन्द्र सूरि और वृत्तिकार आम्रदेव सूरि के आख्यानमणिकोश और गुणचन्द्र मणि के कहारयण कोस की रचना सन् 1101 में पुरी हुई। धम्मक हाणय कोस प्राकृत कथाओं का कोश है । प्राकृत में ही इस पर वृत्ति है । मूल लेखक वृत्तिकार का नाम अज्ञात है 146 कथानक कोश को ध्म्म कहाणयकोस भी कहा गया है। इस में 140 गाथायें है। इसके कर्ता का नाम विनय चन्द्र है, इनका समय सन् 1109 । इस ग्रन्थ पर संस्कृत व्याख्या भी है । इसकी हस्तलिखित प्रति पाटन के भंडार में है । कथावलि प्राकृत कथाओं का एक विशाल ग्रंथ है जिसे भद्रेश्वर ने लिखा है । भद्रेश्वर का समय सन् 11वीं शताब्दी माना जाता है । इस ग्रंथ में त्रिषष्टि - शलाका पुरूषों का जीवन चरित्र संग्रहीत है। इस के सिवाय कालकाचार्य से लेकर हरिभद्र सूरि तक के प्रमुख आचार्यो का जीवन चरित्र वर्णित है । जिनेश्वर ने भी 239 गाथाओं में कथाकोश की रचना की इसकी वृत्ति प्राकृत में है । इसके अतिरिक्त शुभशील का कथाकोश, श्रुतसगर का कथा कोश, सोमचन्द्र का कथा महोदधि, राजशेखर मल धारि का कथा संग्रह आदि कितने ही कथाकोष संस्कृत में लिखे गए है । ज्ञानपंचमी कथा जैन महाराष्ट्री प्राकृत का एक सुन्दर कथा ग्रंथ है जिसके कर्ता महेश्वर सूरि हैं। 47 उनका कथन है कि गूढार्थ और देशी शब्दों से रहित तथा सुललित पदों से ग्रथित ( 20 )
SR No.010266
Book TitleJain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Tiwari
PublisherIlahabad University
Publication Year1993
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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