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________________ तृतीय भव कथा जालिनी और शिखिन की है। चतुर्थ भव की कथा धन और नधक्षी की है। पंचम भव में जय और विजय कथा है। छठे भव की कथा धरण और लक्षमी से सम्बन्धित है। सप्तम भव में सेन और विशेणकुमार की कथा है। अष्टम भव में गुणचन्द्र और वानभन्तर की कथा है और नवम भव में समरादित्य और गिरिषेण की कथा का वर्णन है। __ पूर्व जन्म मे समरादित्य का नाम राज कुमार गुणसेन था। अग्निशर्मा उसके पुरोहित का पुत्र था। वह बहुत कुरूप था। राज कुमार मजाक में उसे नगर भर में नचाता और गधे पर चढ़ाकर अनेक स्थानों पर घुमाता था। अग्निशर्मा को यह बात अच्छा नहीं लगी ऊब कर उसने तापसों की दीक्षा ग्रहण कर ली। कुवलयमाला:-कुवलयमाला के रचयिता उद्योतन सूरि हैं। इस ग्रंथ की रचना सन् 779 ई0 में जाबालिपुर में हुई। यह स्थान जोधपुर के दक्षिण में है। उद्योतन सूरि को वीरभद्र सूरि ने सिद्धान्त और हरभिद्र सूरि ने युक्ति शास्त्र को शिक्षा दी थी। कुवलयमाला काव्य शैली मे लिखा हुआ प्राकृत-कथा साहित्य का एक अनोखा ग्रंथ है। गद्य-पद्यमिश्रित महाराष्ट्री प्राकृत मे चंपू की शैली में लिखी गई है। महाराष्ट्री के साथ इसमें पैशाची, अपभ्रंश और यत्र-तत्र संस्कृत का भी उपयोग हुआ है। मठों में रहने वाले विद्यार्थियों और व्यापार के लिए दूर-दूर तक भ्रमण करने वाले वणिकों की बोलियों का इसमें संग्रह । प्रेम और श्रृंगार के वर्णनों से युक्त, इसमें अलंकारों का सुंदर प्रयोग हुआ है। बीच-बीच में सुभाषित और मार्मिक प्रश्नोत्तर, प्रहेलिका आदि दिखाई देते हैं। ग्रन्थ की रचना शैली पर ( 19 )
SR No.010266
Book TitleJain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Tiwari
PublisherIlahabad University
Publication Year1993
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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