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________________ और सिन्धु घाटी की सभ्यता तथा उसके बाद तक चलती रही276 वैदिक काल में सूर्य की उपासना विभिन्न रूपों में की जाती थी। सूर्य के रूप में वह प्रकाश और गर्मी प्रदान करने वाले, सविता के रूप में वह सभी लोगों को यहाँ तक कि मानव मस्तिष्क के विचारों को भी प्रेरणा तथा उत्साह प्रदान करने , विष्णु के रूप में वह सम्पूर्ण जीवों को पैदा करने वाले, पालन करने वाले तथा सम्पन्नता प्रदान करने वाले, पूषन के रूप में वह पशुओं, फसलों, भोजन तथा वनस्पतियों के संरक्षक देव के रूप में पूजनीय थे।277 मौर्य काल के अंतिम समय से ही सूर्य देव का स्वरूप दृष्टिगोचर होता है और तभी से सूर्य देव की मूर्ति-पूजा का प्रारम्भ होता है ।278 इण्ड्रोग्रीक, शक और कुषाणों के आगमन पर सूर्य की उपासना का प्रचार और बढ़ गया क्योंकि वे ग (विदेशी) अपने देश में सूर्य पूजा से पूर्व परिचत थे ।279 गुप्तकाल में सूर्य देव के बहुत से मंदिर निर्मत किये गये। मन्दसोर (मालवा) में तथा स्कन्द गुप्त के समय में मध्यदेश में सूर्य मंदिर बनवाया गया जिसमें उन्हें भाष्यकर कह कर उनकी प्रार्थना की गई है।280 गुप्त प्रशासन के पतन के पश्चात् बहुत से राजवंशों ने, यथा-मौखिरि, थानेश्वर और कन्नौज के वर्धन वंशीय शासक, काश्मीर के काकेटिक तथा बंगाल के पालवंशीय शासक सूर्य के उपासक बने रहे।281 थानेश्वर के राजा राज्यवर्धन प्रथम, आदित्यवर्धन, तथा महाराज प्रभाकरवर्धन सूर्य देव के उपासक थे ।282 अलबरूनी ने थानेश्वर नामक नगर में सूर्य देव की एक विशाल मूर्ति देखी थी ।283 प्रतिहार नरेश महेन्द्र पाल द्वितीय के उज्जैन भूमिदान पत्र में सूर्य की उपासना का उल्लेख है ।284 सूर्य देव की मूर्ति को खजुराहो के चतुर्भुज मंदिर की दीवाल पर चित्रित किय गया है, वह सात घोड़ो से खीचे जाने वाले रथ में बैठे हुए चित्रित किय गए हैं।285 खजुराहों के संग्रहालय में भी सूर्य की मूर्ति देखने को मिलती है। पूर्व मध्य-कालीन भारत में भी वैदिक काल की भाँति भिन्न भिन्न नामों से सम्बोधित कर उनकी उपासना की जाती थीं-यथा-सूर्य286, इन्द्रादित्य287 भाष्कर288 आदित्य289 और मार्तण्ड290 आदि। उन्हें समस्त रोगों का हर्ता तथा विश्व का प्रकाशक बताया गया है ।291 ( 124 )
SR No.010266
Book TitleJain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Tiwari
PublisherIlahabad University
Publication Year1993
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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