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________________ जैन धर्म की उदारता 1 भले बना हो सम्प्रति हम पर अत्याचारी ॥ किन्तु यही सन्तोष हीं नहिं हम निज प्रण से पुरुष जाति क्या उऋण हो सकेगी इस ऋण से || भगवान् महावीर स्वामी के शासन में महिलाओं के लिये वहुत उच्च स्थान है । महावीर स्वामी ने स्वयं अनेक महिलाओं का उद्धार किया है । चन्दना सती को एक विद्याधर उठा ले गया था, वहां से वह भीलों के पंजे में फँस गई। जब वह जैसे तैसे छूट कर आई तव स्वार्थी समाज ने उसे शंका की दृष्टि से देखा । एक जगह उसे दासी के स्थान पर दीनता पूर्ण स्थान मिला । उसे सब तिरस्कृत करते थे तत्र भगवान् महावीर वामी ने उसके हाथ से आहार ग्रहण किया और वह भगवान महावीर के संघ में सर्वश्रेष्ठ आर्यिका हो गई । तात्पर्य यह है कि जैन धर्म में महिलाओं को उतना ही उच्च स्थान है जितना कि पुरुषों को। यह बात दूसरी है कि जैन समाज आज अपने उत्तरदायित्व को भूल रहा है। ६२ www वैवाहिक उदारता । जैनधर्म की सब से अधिक प्रशंसनीय एवं अनुकूल उदारता तो विवाह संबंधी है । यहां वर्णादि का विचार न कर के गुणवान वर कन्या से संबंध करने की स्पष्ट आज्ञा है । हरिवंशपुराण की स्वाध्याय करने से मालूम होगा कि पहले विजातीय विवाह होते थे, . असवर्ण विवाह होते थे, सगोत्र विवाह भी होते थे, स्वयंवर होता था, व्यभिचार जात दस्सों से विवाह होते थे, म्लेच्छों से विवाह होते थे, वेश्याओं से विवाह होते थे, यहां तक कि कुटुम्ब में भी विवाह हो जाते थे । फिर भी ऐसे विवाह करने वालों का न तो मंदिर चन्द होता था, न जाति विरादरी से वह खारिज किये जाते
SR No.010259
Book TitleJain Dharm ki Udarta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1936
Total Pages119
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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