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________________ जनधम की उदारता www तद्विधा ग्रहणे यत्नं पुत्रिके कुरुतं युवां । तत्संग्रहणकालोऽयं युवयोर्वततेऽधुना ॥ १०२ ।। ___ आदिपुराण पर्व १६ ॥ अर्थात-पुत्रियो! यदि, तुम्हारा यह शरीर अवस्था और अनुपम शील विद्या से विभूषित किया जावे तो तुम दोनों का जन्म सफल हो सकता है । संसार में विद्यावान् पुरुष विद्वानों के द्वारा मान्य होता है। अगर नारी पढ़ी लिखी विद्यावती हो तो वह स्त्रियों में प्रधान गिनी जाती है । इस लिये पुत्रियो ! तुम भी विद्या ग्रहण करने का प्रयत्न करो। तुम दोनों को विद्या ग्रहण करने का यही समय है। __इस प्रकार स्त्री शिक्षा के प्रति सद्भाव रखने वाले भगवान् आदिनाथ ने विधिपूर्वक स्वयं ही पुत्रियों को पढ़ाना प्रारंभ किया। इस संबंध में विशेष वर्णन आदिपुराण के इसी प्रकरण से ज्ञात होगा। इससे मालूम होगा कि इस युग के सृष्टा भगवान् आदिनाथ स्वामी श्री शिक्षा के प्रचारक थे। उन्हें स्त्रियों के उत्थान की चिंता थी और वे स्त्रियों को समानाधिकारिणी मानते थे। नगर खेद है कि उन्हीं के अनुयायी कहे जाने वाले कुछ स्वागियों ने स्त्रियों को विद्याध्ययन, पूजा प्रवाल आदि का अनधिकारी बताकर स्त्री जाति के प्रति घोर अन्याय किया है। स्त्री जाति के अशिक्षित रहने से सारे समाज और देश का जो भारी नुकसान हुवा है वह अवर्णनीय है। स्त्रियों को मूर्ख रख कर स्वार्थी पुरुषों ने उनके साथ पशु तुल्य व्यवहार करना प्रारंभ कर दिया और मन माने ग्रंथ बनाकर उनकी भर पेट निन्दा कर डाली। एक स्थान पर नारी निन्दा करते हुये एक विद्वान ने लिखा है कि
SR No.010259
Book TitleJain Dharm ki Udarta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1936
Total Pages119
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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