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________________ शास्त्रीय दण्ड विधान . ३३ सीधी सादी एवं युक्तिसंगत बात क्यों समझ में नहीं आती ? यदि आज कल के जैनियों की भांति महावीर स्वामी की भी संकुचित दृष्टि होती तो वे महा पापी, अत्याचारी, मांस लोलुपी, नर हत्या करने वाले निर्दयी मनुष्यों को इस पतित पावन जैनधर्म की शरण में कैसे आने देते ? तथा उन्हें उपदेश ही क्यों देते ? उनका हृदय तो विशाल था, वे सच्चे पतित पावन प्रभु थे, उनमें विश्व प्रेम था इसीलिये वे अपने शासन में सबको शरण देते थे। मगर समझ में नहीं आता कि महावीर स्वामी के अनुयायी आज उस उदार बुद्धि से क्या काम नहीं लेते ? भगवान महावीर स्वामी का उपदेश प्रायः प्राकृत भाषा में पाया जाता है। इसका कारण यही है कि उस जमाने में नीच से नीच वर्ग की भी आम भाषा प्राकृत थी । उन सबको उपदेश देने के लिये ही साधारण बोलचाल भाषा में हमारे धर्म प्रन्थों की रचना हुई थी। जो पतित पावन नहीं है वह धर्म नहीं है, जिसका उपदेश प्राणी मात्र के लिये नहीं है वह देव नहीं है, जिसका कथन सबके लिये नहीं है वह शास्त्र नहीं है, जो नीचों से घृणा करता है और उन्हें कल्याण मार्ग पर नहीं लगा सकता वह गुरु नहीं है। जैन धर्म में यह उदारता पाई जाती है इसी लिये वह सर्व श्रेष्ठ है। वर्तमान में जैनधर्म की इस उदारता का प्रत्यक्ष रूप में अमल कर दिखाने की जरूरत है। शास्त्रीय दण्ड विधान । किसी भी धर्म की उदारता का पता उस के प्रायश्चित या दण्ड विधान से भी लग सकता है। जैन शास्त्रों में दण्ड विधान बहुत ही उदार दृष्टि से वर्णित किया गया है। यह बात दूसरी है
SR No.010259
Book TitleJain Dharm ki Udarta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1936
Total Pages119
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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