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________________ गोत्र परिवर्तन ६५ W^^^ का साता के रूप में संक्रमण (परिवर्तन ) हो सकता है उसी प्रकार से नीच गोत्र का ऊँच गोत्र के रूप में भी परिवर्तन ( संक्रमण ) होना सिद्धान्त शास्त्र से सिद्ध है । अतः किसी को जन्म से मरने तक नीचगोत्री ही मानना दयनीय अज्ञान है । हमारे सिद्धान्त शात्र पुकार २ कर कहते हैं कि कोई भी नीच से नीच या अधम से अधम व्यक्ति ऊंच पद पर पहुंच सकता है और वह पावन बन जाता है । यह बात तो सभी जानते हैं कि जो आज लोकदृष्टि में नीच था वही कल लोकमान्यं, प्रतिष्टित एवं महान होजाता है | भगवान कलंक देव ने राजवार्तिक में ऊंच नीच गोत्र की इस प्रकार व्याख्या की है AAVA यस्योदयात् लोकपूजितेषु कुलेषु जन्म तदुच्चैर्गोत्रम् || गर्हितेष यत्कृतं तन्नीचैर्गात्रम् ॥ गर्हितेषु दरिद्राऽप्रतिज्ञातदुःखाः कुलेषु यत्कृतं प्राणिनां जन्म तन्नीचैर्गोत्रं प्रयेतव्यम् ॥ ऊँच नीच गोत्र की इस व्याख्या से मालूम होता है कि जो लोकपूजित - प्रतिष्ठित कुलों में जन्म लेते हैं वे उम्रगोत्री हैं और जो गर्हित अर्थात् दुखी दरिद्री कुल में उत्पन्न होते हैं वे नीच गोत्री हैं | यहां पर किसी भी वर्ग की अपेक्षा नहीं रखी गई है। ब्राह्मरण होकर भी यदि वह निंद्य एवं दीन दुःखी कुल में है तो नीच गोत्र वाला है और यदि शूद्र होकर भी राजकुल में उत्पन्न हुआ है अथवा अपने शुभ कृत्यों से प्रतिष्ठित है तो वह उच्च गोत्र वाला है । वर्ण के साथ गोत्र का कोई भी संबंध नहीं है। कारण कि गोत्र कर्म की व्यवस्था तो प्राणीमात्र में सर्वत्र है, किन्तु वर्णव्यवस्था तो भारतवर्ष में ही पाई जाती है। वर्ण व्यवस्था मनुष्यों
SR No.010259
Book TitleJain Dharm ki Udarta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1936
Total Pages119
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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