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________________ - - धन्यवाद ! ___ श्रीमान् दानवीर, जैन समाज भूपण, सेठ ज्वालाप्रसादजी जौहरी महेन्द्रगढ़ बड़े ही उदार चित्त और सरल परिणामी हैं। आप श्वेस्थानकवासी सम्प्रदाय के स्तम्भ होते हुये भी समस्त जैन समाज के हितैषी है। आपने लगभग एक लाख रुपया जैन सूत्रों के - प्रचार में लगा दिया है और अब भी लगाते रहते हैं आप जो भी . शास्त्र छपाते हैं वे सब अमूल्य वितीर्ण करते हैं। आपने श्रीजैनेन्द्र गुरुकुल पंचकूला की नीव रक्खी और हजारों रुपये की लागत से साहित्य भवन,सामायिक भवन, फैमली कार्टर्स आदि इमारतें वनवाकर गुरुकुल को अर्पण की, और इसके प्रेम में इतने मुग्ध हुये कि इसके पास ही अपनी जमीन खरीद कर "माणक भवन" (अपने बड़े सुपुत्र चि० मारणकचन्द के नाम पर) । नाम की विशाल कोठी, सुन्दर बगीचा आदि बनवाकर प्रति वर्ष कई२ महीना वहां रहने लगे और गुरुकुल के कार्योंमें योग देने लगे। . आजकल आप गुरुकुल कमेटी के अध्यक्ष हैं आपने इस विचार से कि गुरुकुल में इसके प्रेमीजन अपने बालकों को शिक्षा प्राप्त करने के लिये दाखिल करावें, अपने प्रियपुत्र चि०माणकचन्द को . ता०२० अक्तूबर सन् १९३५ रविवार के दिन दाखिल कर दिया है।' अब आप का प्रियपुत्र गुरुकुल के अन्य ब्रह्मचारियों जैसा बन रहा है। मेरी हार्दिक भावना है कि धर्मोपकारी सेठजी के धर्म प्रेम की वृद्धि हो और चि० माणकचन्द जैनधर्म की उच्च शिक्षा प्राप्त करके. जैनधर्म का प्रचार और जैनसमाज का सुधार करें। श्रीमान सेठजी ने मेरी तनिक सी प्रेरणा पर चिठमाणकचन्द के गुरुवुल प्रवेश की खुशी में इस "जैन धर्म की उदारता" के प्रकाशनार्थ १०१) प्रदान किये हैं अतः धन्यवाद ! प्रकाशक
SR No.010259
Book TitleJain Dharm ki Udarta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1936
Total Pages119
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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