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________________ हया जैनधर्म की उदारता (११) विद्यावारिधि जैनदर्शन दिवाकर पं० चम्पतरायजी. जैन बार एट ला (लंडन) यह पुस्तक बहुत ही सुन्दर है। इसमें जैनधर्म के असली स्वरूप को विद्वान लेखक ने बड़ी ही खूवी के साथ दर्शाया है। उदाहरण सब शालीय हैं। उनमें ऐतराज की कोई गंजाइश नहीं है। ऐसी पुस्तकों से जैनधर्म का महत्व प्रगट होता है। इनको कद्र होनी चाहिये। (१२) पं० जुगलकिशोरजी मुख्तार सरसावा पुस्तक अच्छी और उपयोगी है। यह जैनधर्म की उदारता के साथ लेखक के हृदय की उदारता को भी व्यक्त करती है। जो लोग अपनी हृदय संकीर्णता के कारण जैन धर्म को भी संकीर्ण बनाये हुये हैं वे इससे बहुत कुछ शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं। - (१३)व्याकरणाचार्य पं० बंशीधरजी जैन न्यायतीर्थ वीना पुस्तक समयोपयोगी है। इसलिये समय को पहिचानने वालों के लिये उपयोगी होनी ही चाहिये । परन्तु शास्त्रीय प्रमाणों का बल पाकर यह पुस्तक स्थितिपालक दलको भी उपेक्ष्य नहीं हो सकती। (१४) साहित्यरत्न पं० सिद्धसैनजी गोचलीय पुस्तक बहुत अच्छी है । प्रत्येक भापामें अनुवाद करके इसका लाखों की संख्या में मुफ्त प्रचार करना चाहिये। (१५) पं० छोटेलालजी जैन सुपरि० दि० जैन बोर्डिङ्ग अहमदाबाद लेखकने यह पुस्तक लिखकर समाजका बड़ा उपकार किया है। प्रत्येक भाषा में इसका अनुवाद करके बिना कीजाय तो निःसंदेह
SR No.010259
Book TitleJain Dharm ki Udarta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1936
Total Pages119
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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