SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१७) लाचार कहानी ॥ चेत० ॥ फिरि यह दाव कठिन मिलने का जाते पुरुषारथ कर ज्ञानी सब विकलप तजि सुगुरु सीख भजि मानिक यह हित हेत निशानी ॥ चेत०८॥ पद-राग दादरा धान गहाई ॥ ___ यह देखो जगजीवन के अलट परो।यह० ॥ टेक ॥ गाडुरिवत प्रवाह इमि पड़ते हित अनहित सुधि बुधि विसरो ॥ यह० ॥१॥ हांडी परखि ग्रहें दमड़ी को विन परखें जाहि कसर परी । परमारथ हित देव धर्म गुरु परखन नहीं उरमति निगरी यह०२॥ अनरथ दंड रूप कारज की लगो रहित नित लगनि खरी। प्रोजन भूत शास्त्र सामायक चित सरधा नहिं नेक धरी ॥यहरू ॥३॥ सत गुरु सीख गहत नहिं शठ हठ पकड़त जिमि हाडिल लकड़ी।मानिक स्व.
SR No.010257
Book TitleManik Vilas
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy