SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पर परखि तजि दुरमति भजि जिन वृप तेरी सफल घरी ॥ यह ॥४॥ १० पद-राग मझोटी ॥ . ते जग मांहिं अपंडित जानो-जिनने हित अनहित न पिछानो ॥ टेक ॥ भूलि रहे नित शब्द अर्थ में वस्तु स्वरूप नहीं सरधानो ॥ ते ॥ १॥ विपय कपाय भाव वाढत मुख काढ़न कर्कश यच असुहानो। रटत काकवत सिद्धांतन को शठ जन वंचन को सु ठिकानो ॥ ते ॥२॥ ख्याति लाभ पूजादि चाह चिन पडितपनों आपु ही मानो। साधर्मिनसों करतद्वपनिन अ. विनय को सुधरें हटवानी ॥ ते० ३॥ तिनि के विपत्रत शास्त्र होन तिनि दगति मारग कियो पयानो।मानिक ये लक्षण लखि तिनके तजहु प्रसंग सदा मतिवानी ! ॥ते०४॥
SR No.010257
Book TitleManik Vilas
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy