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________________ कही न कोई कष्ट हृदय मेरहते थे वे सुख अक्षय मे । भाग्यवती वह त्रिशला रानीसभी तरह से थी कल्याणी || नृप के ही सग वह भी रहती - प्रभु की परम भक्ति मे बहती ॥ जग मे रहकर जग से बाहरकमल-पत्र - सी निर्मल सुन्दर ॥ उसके जीवन की थी रेखाप्रभु को प्रतिक्षण उसने देखा || था ऐश्वर्य वहाँ पर साराउन्नत था। सौभाग्य सितारा ॥ किसी वस्तु की कमी नही थीदुख की बातें नही कही थी । सुख से सब का मन चचन्न थाभरापुरा वह राज महल था । जय महावीर / 31
SR No.010255
Book TitleJay Mahavira Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManekchand Rampuriya
PublisherVikas Printer and Publication Bikaner
Publication Year1986
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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