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________________ - जैनकथा रत्नकोप नाग पांचमो. लीयें विचार करीने जोयुं तो जाण्यु जे अांहिं गज तो नथी पण तेनो कहे वानो अनिप्राय एवो दे के मानरूंप गज थकी उतस्य एम समजीने पड़ी माननो त्याग कस्यो तेवारें तुरत तेने केवल ज्ञान वर्ष प्रांतमा उत्पन्न थयु. हवे पुष्पचूलानी कथा कहे जे. पुष्पपुरने विपे पुष्पकेतुनामा राजा तेनी पुष्पवती नामनी राणी हती तेना पुत्रनुं नाम पुष्पचून अने पुत्री नुं नाम पुष्पचूना पाडयुं, ते बेहुला बेन युवावस्थाने प्राप्त थयां परस्पर स्नेह होवाथीबेदनूं समान रूप जोड्ने राजायें विचार कस्यो जे बेतु जणा नो वियोग करीये ते सारूं नही? माटेना नगिनी बेदुनो परस्पर विवा ह कस्यो ते अधर्म तेनी माता पुष्पवती जोर शकी नही तेथी दीक्षा ल मरण पामीने देवता थ. ते देवता ते बेदु जाने स्वप्नामां आवी अधर्मे करी यतां नरकनां कुःखो देखाडवा लागी. ते सुःखथकी बीहीती एवी पुष्प चूलायें वैराग्य पामीने अन्निकापुत्र आचार्यनी पासें जश्ने दीक्षा ग्रहण करी. ते आचार्य दीपजंघाबलं होवाथी साध्वीयाहार लावी थापती सा ध्वीने केवलझान उपन्युं एकदिवस वर्षाकालें गुरुने माटे अन्न लावी त्यारे गुरुये कह्यु के हे सति ! अचित्त प्रदेश विषे अन्न लावता विराधना का करे ने ? त्यारें साध्वीयें कह्यु एमां विराधना थ नथी त्यारे गुरुये कह्यु के तें केम जाण्यं के आअचित्त स्थल अने या सचित्त स्थल कहेवाय? त्यारे पुष्पवती कहे जे के जगवन् ! तमारा प्रसादथकी में जाण्युं. ते सांजली केवलज्ञान नपर्नु जाणी मिथ्याकुष्कृत दश्ने गुरुयें पूब्युं के मने केवल ज्ञान क्यारे उत्पन्न थशे. त्यार तेएवं कर्वा जे गंगा उतरतां तमने केवल झान उत्पन्न थाशे ते पनी नावें करी गंगाने उतरता एवा सूरिने पूर्वनवना वैरी देवता ये त्रिशूलें करीने माया, त्यां गुरुने ध्यान ध्यावतां अपकाय जीवोनी । पर दया उत्पन्न थई ते दयायें करी केवल झान उत्पन्न थयु. देवोयें केव लझाननो महोत्सव कस्यो त्यां प्रयागनामा तीर्थ थयुं ते लोकमां अद्या पि प्रसि ॥ए पुष्पचलानो संबंध थयो. हवे मृगावतीनी कथा कहे जे. कौशांबी नगरीनेविषे शतानीक नामा रा जा राज्य करे . तेनी पट्टराणी चेटक राजानी दीकरी मृगावती नामा हती. तेणें ज्यारें पोतानो स्वामी मरण पाम्यो तेवारें पोताना पुत्रने रा ज्य उपर स्थापीने पोतें वैराग्य पामीने श्रीवारस्वाम) पासें दीक्षा ग्रहण
SR No.010250
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages401
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size44 MB
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