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________________ कर्पूरप्रकर, अर्थ तथा कथा सहित. . ६५ कैकमपि के० ) एकेक एवं पण ( देवं के० ) क्षेत्र, (सुजुष्टं के० ) सारी रीतें सेवन करेलु (सर्वमपि के०) सर्व प्रकारना महोटा एवा पण फलनु आपनार थाय ने. केनी पेठे? तो के (कदिकजवत् के) कल्किना पुत्र दत्त नी पेठे. त्या दृष्टांत कहे जे ( यत् के० ) जे (पुण्यं के०) पुण्य (बारा र्तिकसप्तदीपैः के०) बार्त्तिना सात दीवायें करीने थाय ने (तत् के०) ते पुण्य (मंगलदीपकेन के०) एक मंगलदीपें करीने पण थाय ने ॥ ५६ ॥ ___ आहिं कलिकपुत्र दत्त राजानो दृष्टांत होवाथी तेनी कथा कहे जे. श्री महावीरना निर्वाण दिनथी बे हजार वर्षना प्रांतमा पाटलीपुरमा कल्कि राजा थाशे. ते पूर्वनवना मित्र देवतायें आपेला त्रिशूलें करी जरतना त्रण खमने साधशे, तेनो पुत्र दत्त नामा थाशे, ते श्रीजिनना प्रासादोयें करी पृथ्वी अखंमित करावशे, परंतु श्री सर्वाना नाखेला वचनने बद्मस्थ 'जाषितनी पेठे असंबद जाणशे. हवे ते कल्किना पुत्र दत्तराजें जिनप्रासाद रूप एकदेत्र सेवन सारी रीतें कयुं, तो पण तेथी ते सुखी थयो ॥ ५६ ॥ बिंबं मदल्लघु च कारितमत्र विद्यु,न्माल्यादिवत् परनवे ऽपिशुनाय जैनम्॥ ध्यातुर्गुरुर्लघुरपीप्सितदायिमंत्रः, प्रागदौःस्थ्यनाविधनविघ्ननिदेन किं स्यात् ॥ ५॥ अर्थः-(अत्र के ) आ जवने विषे जो (महत् के० ) अत्युल्लष्टथी पांचशे धनुष प्रमाण अने (लघु के०) न्हानुं अंगुष्टपर्व समान एवं (जैनं के० ) जिननुं ( बिंब के) बिंब ( च के०) वली ( कारितं के०) करावेलुं होय, तो ते (विद्युन्माल्यादिवत् के०) विद्युन्मालि देवादिकनी पेठे (परनवेऽपि के० ) परनवने विपे पण (शुनाय के०) गुनने माटे थाय बे. कह्यु के के "नक्कोसपणधपुसय, लदुवाअंगुह पव समा” ए वचन जे. हासा प्रहासा देवांगनाना अधिकारने विषे स्वर्णकारनो जीव विद्युन्माली देव, तेणें जिनबिंब कराव्यु, ते तेने लानने माटे थयुं. इहां दृष्टांत कहे जे (गुरुः के०) गुरु, अने (लघुरपि के०) लघु एवो पण (ध्यातुः के०) ध्यान करनारने (इप्सितदायि के०) इलित पदार्थने आपनारो एवो (मंत्रः के०) मंत्र जे ते (प्रागदौःस्थ्यनाविधनविघ्ननिदे के०) पूर्वजन्मनां करेला जे दुष्कर्म तेणें
SR No.010250
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages401
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size44 MB
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