SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनकथा रत्नकोप नाग पांचमो. गुं केहेवू वली तेने ( मेघरथवत् के० ) मेघरथनी पेठे ( जिनतापि के) तीर्थकर पणुं पण प्राप्त थाय . ते मेघ रथनो जीव अनुक्रमें दशमे नवे श्रीशांतिनाथ नामें तीर्थकर थयो. त्या दृष्टांत कहे . जेम के (इष्टदायि ना के ) इलित पदार्थने देनारा एवा (मणिना के० )चिंतामणियें करीने (धनितुल्यताएव के० ) धनवाननी तुल्यताज (नवति के०) होय ? परंतु ( नृपतुल्यता के० ) राजानी तुल्यता ( किं के० ) झुं (न के० ) न होय. ना होयज अर्थात् व्रतें करीने गृहस्थने केवल मुनितुल्यताज थाय अने जिनता न थाय एम जाणवं नहिं परंतु जिनता पण थायज. __याहिं मेघरथ राजानो दृष्टांत होवाथी तेनी कथा कहे जे. शावस्ती न गरीने विपे मेघरथ राजा राज्य करे जे. एकदा ते राजानी सनामां निमित्ति यो आव्यो. ते निमित्तियाने मंत्री पूथु जे कांक निमित्त कहो त्यारे नै मित्तियें कहूं के आजथं। सातमे दिवसें प्रा राजाना मस्तक उपर वीजली पडशे. ते वचनथी सर्व जनो नयनांत थगया. पनी राजायें पूब्युं के हवे मारे कम कर ? त्यारे केटलाएकें कह्यु के वाणमां बेशीने समुश्मांजावु, केटलाएके कां के गिरिगुफामां जश्ने रहे. त्यारे तेनो एक सुबुदि नामें प्रधान हतो,तेणें कह्यं के ए सर्व जवा द्यो अने देवधर्माराधन करो. जेणे करी सर्व विघ्नोनो नाश थर जाय. पडी राजायें नवीन पाषाणनो यद कराव्यो अने तेने राज्याभिषेक कराव्यो. अने पोतें सर्व त्याग करी जिनालयमांबेसी पोषध व्रत धारण कयु, सातमो दिवस ज्यारे आव्यो, त्यारे वीजली पा पागना यद नपर पडी, तेथी ते यह तरत फाटी गयो एटने राजाने मूकी यदनी उपर विद्युत् पडी. अने राजा पौपधवतना प्रतापें करी बची गयो ते राजाना जीववाथी सर्व जनोने परम प्रमोद थयो. ते राजा अनुक्रमें दशमे नवें श्रीशांतिनाथ नामा तीर्थकर थया. एम पोषधना प्रतापें करी मरण कुःख मट्युं तथा अनुक्रमें तीर्थकरपणुं प्राप्त थयु. माटे सर्व नव्य जीवें पौषधव्रत धारण करवू ॥५१॥ सत्पौषधं विविधसिदिमौषधं य, त्तभावनाशमरसाई हृदग्मिलीढः॥ स्वः सागरेंपुरजनि स्फुटदेममूर्ति, रौर्वा नितप्तविमलाऽजिरिवाब्धिमंथा ॥५॥ पौपधधारं ॥
SR No.010250
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages401
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size44 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy