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________________ जैनकथा रत्नकोष नाग पांचमो. धारण करीने सूती हती ते जागी गइ. तेणीए आशीर्वाद दीयो तेवारें चिं तववा लाग्यो के अहो ! या मारी बेनने में प्रहार कस्यो में जाण्युं जे को ३ पुरुप मारी स्त्रीनी साथै सुतो वे पण आतो, मारी बेन पुरुषवेष धारण करीने सुती जे एम तेने पश्चात्ताप थयो. तदनंतर एक दिवस ते वंकचूल कोई एक नगरने विषे राजधारमा पेठो, तेने अत्यंत सुकुमार जोड्ने ते नग रना राजानी पट्टराणीयें कह्यु के तुं मारो उपनोग कस्य तेम तेणे प्रार्थ ना करी तो पण तेणे ते काम का नहिं अने तेणे काकमांस. नहाण न कयं तेने अंते जिनदास श्रावकें अनशन आप्युं ते नियमना प्रनावथी ते वंकचूल स्वर्गने विपे देवता थयो. माटे एक पण नियम पले, तो तेथी क दापि मोदसुख न मने तो पण, स्वर्गप्राप्ति तो निचे ते प्राणीने थाय. तेमा संदेह जाणवो नहिं माटे सर्व जने परिग्रहवें परिमाण करवू ॥ ३३ ॥ मोगादिलोलुपतया लघुता न शर्म, श्रीब्रह्मदत्तस खिविप्रकुटुंबवत् स्यात् ॥ पीताधिकेंरुचिरुज्जति सीमसिंधुः, शक्रोपि गौतमकलत्ररतश्च शप्तः॥४४॥ अर्थः-(जोगादिलोलुपतया के०) जोगादिकनी घणी लोलुपतायें क रीने जीवने (लघुता के० ) लघुपणुं ( स्यात् के० ) होय डे परंतु (शर्म के०) सुख ( न के०) न होय केनी पेठे तो के ( श्रीब्रह्मदत्तसखि विप्रकु टुंबवत् के० ) श्रीब्रह्मदत्त जे दशमो चक्री तेनो सखि जे ब्राह्मण तेना कु टुबनी पेठे. जेम चक्रवर्तीनी मीठी रसोइ जमवाथी ब्राह्मणनुं कुटुंब लघु ताने प्राप्त थयुं अने सुखने न पाम्यु. तेनी पेठे जाणवू. त्या दृष्टांत कहे ने. (पीताधिपुरुचिः के०) पान करीने अधिक इंनी कला जेणे एवो (सिंधुः के०) समुझ ते पोतानी (सीम के०) सीमाने (नष्नति के०) त्याग करे बे. अर्थात् चंद किरणना पानथकी समुर्तिगत थाय ने एटले अति चंइकिरणना पाननी लोलुपतायें निर्मर्याद समुह थाय डे. (च के०) अने (शकोपि के०) इंइ पण (गौतमकलत्ररतः के०) गौतमऋषिनी स्त्रीमा था सक्त थयो तेने ( शप्तः के० ) गौतम ऋषिये शाप आप्यो लघुता पाम्यो. अांहिं ब्रह्मदत्तना सखा विप्रनो तथा इंनो एम बे दृष्टांत ने तेमां प्र थम ब्रह्मदत्तचकीना सखा ब्राह्मणनी कथा कहे . कांपिठ्यपुरने विषेत्र
SR No.010250
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages401
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size44 MB
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