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________________ G जैनकथा रत्नकोप नाग पाचमो. कोण बो ? त्यारे ते बोल्यो के ढुं वंणिक , मारुं नाम मम्मण ने. महारे एक बलद सुवर्ण रत्ननोचे अने बीजो बलद मेलववा माटे या काम करूं बु तेपनी ते कौतुक युक्त श्रश्ने श्रेणिक राजायें चेलणा राणीनी साथें जर ते मम्मण शेठना घरमां त्रीजी नूमिने विपे सुवर्ण अने रत्न समूहथी जडे ला एवा शीगडावाला वे वृपनीने नजरें दीना. ते जोस्ने श्रेणिकराजा चे लगा राणीने कहे के हे स्त्रि! श्रावी समृद्धि मारा नंमारमा पण न थी. वली श्रेणिक राजा ते मम्मण शेठने पूछे छे के एटली समृद्धि बतां त मो नदीमाथी काष्ठने शामाटे खेंचीलीयो बो ? त्यारें मम्मण शेवें कह्यु के हे राजन् ! आकाष्ठोनां रत्न थाशे. त्यारें राजायें कह्यु के थोडी किम्मतनां काष्ठोयें करी रत्न ते केम थाय ?. त्यारे तेणें कह्यु के या बावना चंदननां घणी किम्मतनां काष्ठो ढुं जलं ते वातं सांजली साश्चर्य थश्ने राजा त था राणी वेदु पोताने घेर गयां. ए रीतें जन्मपर्यंत मम्मण शेवें. बते धने. कोइने कांही पण आप्युं नहिं तेम खाधुं वापयुं पण नहीं ॥ ४० ॥ सीमस्थिते जलनिधौ निजकालमाने, शीतातपांन सि च जीवति जीवलोकः॥दिगमानमानमपि जंतुहिता य तत्, स्याच्चारुदत्तवदिदाप्रयतोति जुःखी ॥४१॥ अर्थः-( जलनिधौ के० ) समुह, ( सीमस्थिते के०) मर्यादामा रहे बते (जीवलोकः के० ) जीवलोक, (जीवति के०) जीवे में. जो तेनी मर्या दा मूकीने समुश् वर्ने तो केवी रीतें जीवलोकथी जीवाय ? (च के) त था ( शीतातपांनसि के०) शीतकाल, नष्णकाल अने वर्षाकालते (निजका समाने के०) निजप्रस्ताव वर्तमान थये बते जीवलोक, जीवे . पण पोता नो जे काल तेनो मान मूकी त्रणे व्यतिक्रम पामे, तो जीवलोक केम जीवे ? जीवेज नही. (तत् के०) तेनी पेठे निज समयप्रमाणे (दिगमानमानमपि के ) दिशा परिमाणनुं व्रत पण ( जंतुहिताय के०) जीवोना कट्याराने माटे ( स्यात् के० ) होय. तथा (इह के०) आ व्रतने विषे (अप्रयतः के० ) अनादर करनार जे पुरुष थाय, ते (अतिःवी के०) अत्यंत मुः खी थाय ने. केनी पेठे ? तो के ( चारुदत्तवत् के०) चारुदत्तनी पेठे.जेम चारुदत्तदिगवतना त्यागें करी फुःखी थयो. तेम थाय , ए नावार्थ जाणवो.
SR No.010250
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages401
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size44 MB
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