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________________ जैनुकधारनकोष नाग पांचमो. प्रस्तावना. ॥झानरुचि सम्यकदृष्टि सङनोना उपकारथी जैनकथारत्नकोष नामना पुस्तक संबंधी पंदर नाग मांहेलो था पांचमो नाग उपाइ तैयार थयो. सिंदूरप्रकर, कर्पूरप्रकर, केसरप्रकर, कुंकुमप्रकर,अने हिंगुलप्रकर, ए पां च ग्रंथ सुनाषित उतां एकज आचार्यना रचेला , ते प्रत्येक प्राणीने ध ममां दृढावनारा होवाथी ए मांहेलो सिंदूरप्रकर तो एज पुस्तकना प हेला नागमा पाइ गयो. अने बीजो कपूरप्रकर या पांचमा नागनाया दिमां अर्थ तथा संकेप एकसो सत्तावन कथा सहित बाप्यो ने. तेमां १३१ काव्यपर्यंतनी अवचूरी महा। पासे हती तेना उपरथी अर्थ कयो, उपरांत काव्यमा पर्वणीना दिवसोमां सत्कर्म करवाना वीश द्वार , पण तेनी टीका प्रमुख नथी माटे ते मूलपातेज बाप्या जे. तेमज ए ग्रंथमां ए काद बे काव्य बागल पाउल पाई गयेला , तथा प्रत्यंतरेबे काव्य व धारें दीवामां आव्या, ते सर्व अनुक्रमणिकामां सुधारी लीधा . तथा ग्रं थने बापवानी उतावलथी अगुरूता दीनामां आवशे,ते पंमितजनो सुधारी वांचवा कृपा करशे. यद्यपि पंमितो उपर नार मूकीने अक्षता राखवी ए योग्य कहेवाय नहीं; तथापि अगाउथी रूपैया नरनारा साहेबोनी तरफ थी ताकीद थवानी मने आशंका रहेवाने सीधे,जेम बने तेम तरत नापी ग्रंथ तैयार करवाना हेतुथी, अथवा प्रमादादि दोषथी, तेमज जूदी जूदी प्रतोमां जूदा जूदा पानंतर दोवाथी, तया महारीपासें अवचूरीनी एकज
SR No.010250
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages401
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size44 MB
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