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________________ जैनकथा रत्नकोप नाग पांचमो. ने घणोज वालो हतो ज्यारे युवान थयो त्यारें श्रीकृष्मे तेने बे कन्या प रणावी श्रीनेमीनाथनी पासें धर्म देशना सांजली प्रतिबोध पामी बेदु कन्या नो त्याग करी ते दिवसेंज व्रत ग्रहण करतो हवो. तेणे नगवानने पूज्यु के महाराज! मने क्यारे क्यां मोक्षप्राप्ति थाशे प्रजुयें कडं के,हमणांज स्मशा नमा जो कायोत्सर्ग करे, तो मोद थाय. आ वात गजसुकुमाल सांजली ने स्मशानमां जश् कायोत्सर्गमां उनो रह्यो. ते समयने विषे श्वसुर सोमि लनामा ब्राह्मणें तेने जोयो अने ते केहेवा लाग्यो के हे पापी! मारी पु त्रीने मुकीने आवो आ पाखंझ झुं करे ने ? एम कहीने ते मुरात्मायें खे रना काष्ठना अमिना अंगारानुं गाडं तेनी उपर नारख्यु अने त्यांथी चा व्यो गयो. ते गज सुकुमाल समता आणी उपसर्गने सहन करतो तो बलतां बलतां केवलझान पामीने सिधिने प्राप्त थतो हवो कहेलु डे के ॥ सपरिक्कम्मराउल,वाईएण सीसे पलिवीए नियए॥ गयसुकुमालेण खमा,तहा कया जहा सिवं पत्तो ॥ १ ॥ ॥ २५ ॥ प्रीत्यै शमी स्वपरयोरपि चमरु, शिष्योयथात्मनि गुरावपि केवला ॥ सप्तर्षिसंगतिमवाप्य विशा खनामा,चौरोऽप्यनूदिलसज्ज्वलदिव्यशक्तिः ॥२६॥ अर्थः-( शमी के ) उपशम करनारो प्राणी, ( स्वपरयोरपि के० ) पो ताने तथा परने पण (प्रीत्यै के० ) प्रीतिने माटे थाय . (यथा के०) जेम (चंमरुशिष्यः के०) चमशचार्यनो शिष्य (केवला के०) केवलका ननी दियें करीने (आत्मनि के०) पोतानेविषे तथा (गुरावपि के०) चम रुझचार्यनामा गुरुने विपे प्रीति पात्र थयो. वली लुंटवाने आवेलो (विशाखः नामा के०) विशाख नामा (चौरोपिः के०) चोर पण तीर्थयात्राने माटे या काश माथी उतरता एवा (सप्तर्षिसंगति के०) सात ऋषिनी संगतिने (अ वाप्य के०) पामीने (विलसज्ज्वलदिव्यशक्तिः के०) प्रकाशित के उज्ज्वल दिव्य कीर्ति जेनी एवो थयो. वली “फाड घोडो संसार थोडो” एम बोलतो बने घोटकना वृदनी चौतरफ बार वरस फरतां फरतां ते दिव्यशक्तिवालो थयो तेज सात ऋषिना उपदेशथी वाल्मीकीज्ञषि एरीते प्रसि६ थयो. आमां बे दृष्टांतमांप्रथम चंमरुना शिष्यनी कथा कहे . ताम्रलिप्ति
SR No.010250
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages401
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size44 MB
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